पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म कहि देबे संदेस के निर्माता-निर्देशक श्री मनु नायक जी से आप तक पहुँचाने के लिए फिल्म के गानों का ऑडियो और फोटोग्राफ प्राप्त हुआ है। जिसे आज से एक श्रृंखला के रूप में एक-एक करके आपको सुनाएगें …
कहि देबे संदेस
(यू सर्टिफिकेट)
केंद्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड
35 एमएम, लंबाई – 3500.93 मीटर, रील – 13
प्रमाणपत्र संख्या – 91,725
जारी करने की तारीख – 06/10/1979
जारीकर्ता – अपर्णा मोहिले
(यह प्रमाणपत्र पुर्नप्रदर्शन का है। वास्तव में यह फिल्म 14 अप्रैल 1965 को रिलीज हुई थी)
चित्र संसार के मोनो के साथ पाश्र्व में सुप्रसिद्ध कवि जयशंकर प्रसाद रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ की पंक्ति निर्माता-निर्देशक मनु नायक की आवाज में गूंजती है –
इस पथ का उद्देश्य नहीं है
श्रांत भवन में टिक रहना
किंतु पहुंचना उस सीमा तक
जिसके आगे राह नहीं है।
इसके बाद टाइटिल इस तरह शुरू होता है।
हम आभारी हैं श्री रामाधार चंद्रवंशी, श्री बृजलाल वर्मा एमएलए, श्री एपी श्रीवास्तव बीडीओ एवं पलारी ग्राम वासियों के जिनका उदार सहयोग प्राप्त हुआ है।
चित्र संसार प्रस्तुत करते हैं
कहि देबे संदेस
पात्र
सुरेखा पारकर, उमा राजु, कानमोहन, कपिल कुमार, दुलारी, वीना, पाशा, सविता, सतीश, टिनटिन और साथ में नई खोज कमला, रसिकराज, विष्णुदत्त वर्मा, फरिश्ता, गोवर्धन, सोहनलाल, आरके शुक्ल, बेबी कुमुद,अरूण, कृष्णकुमार,बेबी केसरी….और रमाकांत बख्शी
संकलन – मधु अड़सुले, सहायक – प्रेमसिंग
वेशभूषा – जग्गू
रंगभूषा – बाबू गणपत, सहायक – किशन,
स्थिर चित्रण – आरवी गाड़ेकर, श्री गुरूदेव स्टूडियो
छाया अंकन – के.रमाकांत, सहायक – बी.के.कदम
रसायन क्रिया – बाम्बे फिल्म लेबोरेटरीज प्रा.लिमिटेड, दादर
प्रोसेसिंग इंचार्ज – रामसिंग
प्रचार सामग्री व परिचय लेखन – काठोटे, भारती चित्र मंदिर रायपुर
निर्माण व्यवस्था – बृजमोहन पुरी
प्रचार अधिकारी – रमण
नृत्य – सतीशचंद्र
ध्वनि आलेखन – त्रिवेदी साऊंड सर्विस
गीत आलेखन – कौशिक व बीएन शर्मा
पार्श्वगायन – मोहम्मद रफी, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, मुबारक बेगम,
मीनू पुरूषोत्तम, सुमन कल्यानपुर
गीत – राजदीप
संगीत – मलय चक्रवर्ती, सहायक – प्रभाकर
सह निर्देशक – बाल शराफ
लेखक, निर्माता, निर्देशक – मनु नायक
(टाइटिल में पार्श्वगायन में मुबारक बेगम का नाम जरूर है लेकिन उनकी आवाज में इस फिल्म में गीत नहीं रखा गया है। इसी तरह फिल्म में प्रमुख भूमिका निभाने वाले शिवकुमार दीपक ने अपना नाम रसिकराज रख लिया था, इसलिए टाइटिल में यही नाम दिया गया है।)
मनु नायक और ‘कहि देबे संदेस’ की पृष्ठभूमि
पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने वाले मनु नायक की कहानी भी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। 11 जुलाई 1937 को रायपुर तहसील के कुर्रा गांव (अब तिल्दा तहसील) में जन्मे श्री नायक 1957 में मुंबई चले गए थे कुछ बनने की चाह लेकर। यहां शुरूआती संघर्ष के बाद उन्हें काम मिला निर्माता-निर्देशक महेश कौल के दफ्तर में। आज शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि गोपीनाथ, हम कहां जा रहे हैं, मुक्ति, दीवाना, प्यार की प्यास, सपनों का सौदागर, तलाक और पालकी जैसी सुपरहिट फिल्में देने वाले कश्मीरी मूल के फिल्मकार महेश कौल का रायपुर से भी रिश्ता था। इस छत्तीसगढ़ी रिश्ते पर बात फिर कभी।
खैर, स्व.महेश कौल की सुप्रसिद्ध पटकथा लेखक पं.मुखराम शर्मा के साथ व्यवसायिक साझेदारी में अनुपम चित्र नाम की कंपनी थी। इसी अनुपम चित्र के दफ्तर में मुलाजिम हो गए मनु नायक। मुलाजिम भी ऐसे कि लगभग ‘ऑल इन वन’ का काम। प्रोडक्शन से लेकर अकाउंट सम्हालने तक का काम और इन सब से बढ़ कर हिंदी में लिखने वाले पं.मुखराम शर्मा की रफ स्क्रिप्ट को फेयर करने कॉपी राइटर जैसी जवाबदारी भी। पं.मुखराम शर्मा की लिखी और महेश कौल की निर्देशित अनुपम चित्र की पहली फिल्म ‘तलाक’ 1958 में रिलीज हुई। राजेंद्र कुमार, कामिनी कदम, राधाकिशन और सज्जन अभिनीत इस फिल्म में गीत पं.प्रदीप और संगीत सी.रामचंद्र का था। फिल्म ‘तलाक’ सुपर-डुपर हिट साबित हुई और इसके साथ ही चल निकली अनुपम चित्र कंपनी। इस कंपनी ने न सिर्फ फिल्में बनाई बल्कि फिल्मों के प्रदर्शन के अधिकार भी खरीदे। इस तरह मनु नायक भी फिल्म निर्माण के हर पहलू से परिचित होते गए। मनु नायक के बारे में कुछ और बातें आगे होंगी लेकिन अभी पहले एक ऐसे घटनाक्रम की बातें जिसने एक छत्तीसगढिय़ा को अपनी मिट्टी की भाषा में पहली फिल्म बनाने प्रेरित किया।
भोजपुरी ने दिखाया छत्तीसगढ़ी को रास्ता
वह 1961-62 का दौर था जब पहली भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’की रिकार्ड तोड़ सफलता ने भोजपुरी सिनेमा का सुखद अध्याय शुरू किया। दादर के रूपतारा स्टूडियो व श्री साउंड स्टूडियो में धड़ल्ले से दूसरी कई भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग चल रही थी। माहौल ऐसा था कि क्षेत्रीय सिनेमा के नाम से भोजपुरी फिल्मों का सूरज पूरे शबाब पर था। ऐसे में रंजीत स्टूडियो में महेश कौल की दूसरी फिल्मों में व्यस्त फिल्मकार मनु नायक तक भी भोजपुरी फिल्मों की चर्चा पहुंची। ‘गंगा मइया…’ और उसके बाद बनने वाली ‘लागी नाही छूटे राम’ और ‘बिदेसिया’ जैसी दूसरी फिल्मों की सफलता ने मनु नायक को भी उद्वेलित किया कि आखिर हम छत्तीसगढ़ी में फिल्म क्यों नहीं बना सकते।
अनुपम चित्र कंपनी के मुलाजिम के तौर पर 350 रूपए मासिक पगार पाने वाले मनु नायक के सामने चुनौती थी कि छत्तीसगढ़ी में फिल्म बनाएं तो बनाएं कैसे…? एक तो रकम का जुगाड़ नहीं दूसरे हौसला डिगाने वाले भी ढेर सारे लोग। भोजपुरी के नज़ीर हुसैन, शैलेंद्र, चित्रगुप्त और एस.एन.त्रिपाठी जैसे दिग्गज छत्तीसगढ़ी फिल्म में नहीं है तो फिर तुम्हारी छत्तीसगढ़ी फिल्म मुंबई में बनेगी कैसे? इसमें कौन काम करेगा? बन भी गई तो देखेगा कौन? सिर्फ छत्तीसगढ़ में रिलीज कर घाटे की भरपाई कर पाओगे? ऐसे ढेर सारे ‘ताने’ और सवाल थे युवा मनु नायक के सामने। लेकिन पास था तो खुद का विश्वास और डॉ.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’ जैसे हौसला देने वाले दोस्त का साथ। फिर महेश कौल और पं.मुखराम शर्मा की छाया का भी असर था कि बहुत सी दिक्कतें तो शुरूआती दौर में ही खत्म हो गई।
पार्टनर नदारद … साथ दिया अपनों ने
अंग्रेजी की कहावत ‘वैल बिगन इस हाफ डन’ की तर्ज पर स्टोरी, कास्टिंग और दूसरे तमाम पहलुओं को फाइनल करने के बाद अंततः मनु नायक ने तय किया पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म को छत्तीसगढ़ अंचल में ही फिल्माया जाए। मनु नायक अपनी फिल्म के निर्देशन की जवाबदारी महेश कौल के सहायक के तौर पर सेवा दे रहे रायपुर के निर्जन तिवारी को देना चाहते थे। हालांकि कुछ व्यक्तिगत कारणों से अनुबंध के बावजूद मनु नायक ने निर्जन तिवारी को ‘नमस्ते’ कर खुद ही निर्देशन की जवाबदारी सम्हालने का फैसला लिया। लेकिन ‘कहि देबे संदेस’ के रास्ते में रूकावटें भी कम नहीं थी। फिल्म निर्माण के लिए मनु नायक का रायपुर के व्यवसायिक भागीदारों नारायण चंद्राकर और तारेंद्र द्विवेदी के साथ बाकायदा अनुबंध हुआ था,जिसमें प्रमुख रूप से इस बात का उल्लेख था कि श्री नायक अपनी पूरी टीम लेकर रायपुर पहुंचेंगे और इन भागीदारों द्वारा पहले से तय की गई पंडरिया और आस-पास के लोकेशनों पर शूटिंग होगी,जिसका सारा खर्च भी भागीदार ही उठाएंगे।
इस तरह अनुबंध के अनुसार श्री नायक अपनी टीम लेकर 12 नवंबर 1964 को मुंबई से रायपुर के लिए रवाना हो गए। अगले दिन दुर्ग रेल्वे स्टेशन पर नारायण चंद्राकर मिले और अनमने ढंग से यह बता दिया कि रायपुर में श्री द्विवेदी ने कोई तैयारी नहीं की है। ऐसे मुश्किल वक्त में मनु नायक को रायपुर के रामाधार चंद्रवंशी, पलारी के विधायक बृजलाल वर्मा, बीडीओ एपी श्रीवास्तव और पलारी गांव के लोगों का उदार सहयोग मिला। फिल्म के टाइटिल में मनु नायक ने इन लोगों का आभार जताया है।
रायपुर में बुनकर संघ के सामने खपरा भट्ठी के पास रामाधार चंद्रवंशी के निवास पर श्री नायक ने अपनी पूरी टीम को ठहराया और टहलते हुए बस स्टैंड की तरफ निकले। जहां संयोग से उनकी मुलाकात पलारी से कांग्रेसी विधायक बृजलाल वर्मा से हो गई। चूंकि उन दिनों अखबारों में मनु नायक और उनकी पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म के बारे में काफी कुछ छप रहा था लिहाजा श्री वर्मा ने पैदल जा रहे मनु नायक को रोका और हालचाल पूछा। जब श्री नायक ने अपनी दुविधा बताई तो उन्होंने तुरंत सारी व्यवस्था करने एक चिट्ठी अपने भाई तिलक दाऊ के नाम लिख दी। बातों-बातों में श्री वर्मा ने शर्तनुमा एक प्रस्ताव भी रख दिया कि पूरी फिल्म की शूटिंग पलारी में होगी और यह सुविधा भी दे दी कि महिलाओं के लिए उनके घर के पुश्तैनी गहने इस्तेमाल किए जाएंगे।
मुहूर्त शॉट रायपुर के विवेकानंद आश्रम में
इस तरह तय फिल्म की शूटिंग का रास्ता साफ हो गया लेकिन पलारी के लिए रवानगी तय हुई 14 नवंबर की शाम की। ऐसे में श्री नायक के सामने दुविधा थी कि पूरे एक दिन टीम को ख़ाली कैसे रखे। इसका भी इंतजाम उन्होंने कर लिया। पास के रामकृष्ण मिशन आश्रम में जाकर उन्होंने स्वामी आत्मानंद से मुलाकात की और धूम्रपान की पाबंदी की शर्त पर उन्होंने आश्रम के भीतर एक दृश्य फिल्माने की इजाजत ले ली। इस तरह श्री नायक ने ‘कहि देबे संदेस’ के मुहूर्त शॉट के तौर पर 14 नवंबर 1964 को पहला दृश्य हॉस्टल के एक कमरे में दो दोस्तों कान मोहन और कपिल कुमार के बीच की बातचीत वाला शूट किया। इसके बाद यूनिट पलारी पहुंची। यहां फिल्म की शूटिंग शुरू तो हुई लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत थी कच्ची फिल्म की। शूटिंग के लिए तब ब्लैक एंड व्हाइट कच्ची फिल्म ब्रिटेन से समुद्री मार्ग से आती थी। भारत-पाक युद्ध के चलते देश में आपातकाल के चलते कच्ची फिल्म के लिए लगभग राशनिंग की स्थिति थी। ऐसे में मनु नायक के सामने चुनौती थी कि जितनी फिल्म मिल सकती है उससे कम से कम रि-टेक में शूटिंग पूरी करें। इस चुनौती को उन्होंने पूरा भी किया। कुछ दृश्य रायपुर और भिलाई में भी शूट किए गए। इसकी चर्चा आगे करेंगे।
मोहम्मद रफी की आवाज में रिकार्ड हुआ पहला गीत
मनु नायक अपने सीमित बजट की वजह से गीतकार डॉ.एस.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’ और संगीतकार मलय चक्रवर्ती पर यह राज जाहिर नहीं करना चाहते थे कि वह बड़े गायक-गायिका को नहीं ले सकेंगे। लेकिन, होनी को कुछ और मंजूर था। तब मलय चक्रवर्ती धुन तैयार करने के बाद पहला गीत रफी साहब की आवाज में ही रिकार्ड करने की तैयारी कर चुके थे और उनकी रफी साहब के सेक्रेट्री से इस बाबत बात भी हो चुकी थी। सेक्रेट्री रफी साहब की तयशुदा फीस से सिर्फ 500 रूपए कम करने राजी हुआ था। सीमित बजट के बावजूद अपनी धुन के पक्के मनु नायक ने हिम्मत नहीं हारी और मलय दा को लेकर सीधे फेमस स्टूडियो ताड़देव पहुंच गए। इसके आगे का हाल खुद मनु नायक की जबानी सुनिए – “वहां जैसे ही रफी साहब रिकार्डिंग पूरी कर बाहर निकले, मैनें उनके वक्त की कीमत जानते हुए एक सांस में सब कुछ कह दिया। मैनें अपने बजट का जिक्र करते हुए कह दिया कि मैं छत्तीसगढ़ी की पहली फिल्म बना रहा हूं, अगर आप मेरी फिल्म में गाएंगे तो यह क्षेत्रीय बोली-भाषा की फिल्मों को नई राह दिखाने वाला कदम साबित होगा। चूंकि रफी साहब मुझसे पूर्व परिचित थे, इसलिए वह मुस्कुराते हुए बोले – कोई बात नहीं, तुम रिकार्डिंग की तारीख तय कर लो। और इस तरह रफी साहब की आवाज में पहला छत्तीसगढ़ी गीत -‘झमकत नदिया बहिनी लागे’ रिकार्ड हुआ। इसके अलावा रफी साहब ने मेरी फिल्म में दूसरा गीत ‘तोर पैरी के झनन-झनन’ को भी अपना स्वर दिया। इन दोनों गीतों की रिकार्डिंग के साथ खास बात यह रही कि रफी साहब ने किसी तरह का कोई एडवांस नहीं लिया और रिकार्डिंग के बाद मैनें जो थोड़ी सी रकम का चेक उन्हें दिया, उसे उन्होंने मुस्कुराते हुए रख लिया। मेरी इस फिल्म में मन्ना डे, सुमन कल्याणपुर, मीनू पुरूषोत्तम और महेंद्र कपूर ने भी गाने गाए लेकिन जब रफी साहब ने बेहद मामूली रकम लेकर मेरी हौसला अफज़ाई की तो उनकी इज्जत करते हुए इन दूसरे सारे कलाकारों ने भी उसी अनुपात में अपनी फीस घटा दी। इस तरह रफी साहब की दरियादिली के चलते मैं पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म में इन बड़े और महान गायकों से गीत गवा पाया।”
प्रीमियर रायपुर के बजाए दुर्ग में
आउटडोर शूटिंग के बाद मुंबई में सुआ गीत सहित कुछ अन्य दृश्यों की इनडोर शूटिंग हुई। पोस्ट प्रोडक्शन के बाद अंतत: 14 अप्रैल 1965 को फिल्म रिलीज हुई दुर्ग की प्रभात टाकीज में। फिल्म का प्रीमियर होना था रायपुर के मनोहर टॉकीज में, लेकिन कतिपय विवाद (इसका खुलासा बाद में) के चलते टॉकीज के प्रोप्राइटर शारदा चरण तिवारी ने अनुबंध के बावजूद दो दिन पहले ही फिल्म के प्रदर्शन से मनाही कर दी। यह अलग बात है कि दुर्ग में यह फिल्म बिना किसी विवाद के चली, फिर इसे भाटापारा में रिलीज किया गया और सारे विवादों के निपटारे के बाद जब फिल्म टैक्स फ्री हो गई तो रायपुर के राजकमल (आज की राज टॉकीज) में प्रदर्शित हुई।
नायिकाओं के सेक्रेट्री से प्रोडक्शन कंट्रोलर तक का सफर
अब आज चलते-चलते थोड़ी सी बात मनु नायक के कैरियर को लेकर। लगातार विवादों के चलते मनु नायक का कैरियर भी प्रभावित हुआ। हालांकि इसके बावजूद उन्होंने अगली छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘पठौनी’ की घोषणा कर दी। लेकिन ‘कहि देबे संदेस’ का कर्ज छूटते-छूटते और विभिन्न कारणों से ‘पठौनी’ शुरू नही नहीं हो पाई। इस बीच मुंबई में टिके रहने और परिवार चलाने श्री नायक ‘जो काम मिला सो किया’ की स्थिति में आ गए। तब भी कई मॉडल हीरोइन बनने का ख्वाब लिए मुंबई पहुंच रहीं थीं, जिन्हें बतौर सेक्रेट्री श्री नायक ने मंजिल दिलाने की कोशिश की लेकिन मॉडल और उनके सेक्रेट्री दोनों को नाकामी हासिल हुई। तभी नई तारिका रेहाना (सुल्ताना) का पदार्पण हुआ। श्री नायक ने रेहाना की सेक्रेट्रीशिप कर ली। इस दौरान ‘दस्तक’ और ‘चेतना’ की सफलता ने रेहाना के कैरियर को नई ऊंचाईयां दे दी। इसी बीच संयोगवश श्री नायक को तब की सुपर स्टार तनूजा का सेक्रेट्री बनने का मौका मिला। इस बार भी तनूजा और मनु नायक दोनों एक दूसरे के लिए ‘लकी’ साबित हुए। बाद में इन्हीं संबंधों के चलते तनूजा ने अपनी बेटी काजोल को लांच करने पहली फिल्म ‘बेखुदी’ के निर्देशन का दायित्व भी श्री नायक को सौंपा था, हालांकि परिस्थितिवश फिल्म श्री नायक के हाथों से निकल गई, जिसकी अलग कहानी है। खैर, तनूजा की सेक्रेट्रीशिप के दौरान श्री नायक ने प्रोडक्शन कंट्रोलर के तौर पर अपने कैरियर की नए ढंग से शुरूआत की। पहली फिल्म डायरेक्टर मुकुल दत्त की ‘आज की राधा’ थी। रेहाना सुल्ताना, महेंद्र संधू, रंजीत, डैनी डैंग्ज़ोंपा और पद्मा खन्ना जैसे सितारों से जड़ी यह फिल्म कतिपय कारणों से रिलीज नहीं हो पाई। बाद में ‘जीते हैं शान से’ सहित बहुत सी फिल्में उन्होंने बतौर प्रोडक्शन कंट्रोलर उन्होंने की। नए दौर के छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘मयारू-भौजी’ में श्री मनु नायक के नाम का इस्तेमाल किया गया लेकिन उसमें उनका कितना योगदान था यह श्री नायक और इस फिल्म की यूनिट से जुड़े प्रमुख लोग बेहतर बता सकते हैं। इन दिनों श्री नायक फिर एक बार सक्रिय हैं अपने एक महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट को लेकर।
सुधि पाठक श्री मनु नायक से संपर्क कर सकते है –
पता : 4बी/2, फ्लैट-34, वर्सोवा व्यू को-आपरेटिव सोसायटी, 4 बंगला-अंधेरी, मुंबई-53
मोबाइल : 09870107222
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आगे पढ़िए . . . अगले गीत में
प्रस्तुत आलेख लिखा है श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी ने। भिलाई नगर निवासी, जाकिर जी पेशे से पत्रकार हैं। प्रथम श्रेणी से बीजेएमसी करने के पश्चात फरवरी 1997 में दैनिक भास्कर से पत्रकरिता की शुरुवात की। दैनिक जागरण, दैनिक हरिभूमि, दैनिक छत्तीसगढ़ में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं देने के बाद आजकल पुनः दैनिक भास्कर (भिलाई) में पत्रकार हैं। “रामेश्वरम राष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता” का प्रथम सम्मान श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी को झांसी में दिसंबर 2004 में वरिष्ठ पत्रकार श्री अच्युतानंद मिश्र के हाथों दिया गया।
मोहम्मद जाकिर हुसैन
(पत्रकार)
पता : क्वार्टर नं.6 बी, स्ट्रीट-20, सेक्टर-7, भिलाई नगर, जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मोबाइल : 9425558442
ईमेल : mzhbhilai@yahoo.co.in
पेश है आज का गीत …
झमकत नदिया बहिनी लागे
परबत मोर मितान हवे रे भाई
परबत मोर मिता~न
हो हो हो~हो
में बेटा हंव ए धरती के
धरती~~ धरती मोर परान हवे रे भाई
धरती मो~र परान
झमकत नदिया बहिनी लागे
परबत मोर मितान हवे रे भाई
परबत मोर मिता~न
हो हो हो~हो
हरियर लुगरा~ पहिरे भुइंया
चंदा दिए कपार मा~
तरिया के दरपन मा मुख ला
देखत बइठे पार मा
सिंदूर बुके सांझ इहां के
सोनहा इहां बिहान हवे रे भाई
सोनहा इहां बिहा~न
झमकत नदिया बहिनी लागे
परबत मोर मितान हवे रे भाई
परबत मोर मिता~न
हो हो हो~हो
हो~~हो होहो हो~~हो
हो~~हो होहो हो~~हो
होओओओओओ हो
होओओओओओ हो
कान के खिनवा~ झम-झम झमके
पैरी झनके पांव मा~
घर-घर चूरी खन-खन खनके
सरग उतर के गांव मा~
हरियर-हरियर राहर डोले
पिंवरा-पिंवरा धान हवय रे भई
पिंवरा-पिंवरा धा~न
झमकत नदिया बहिनी लागे
परबत मोर मितान हवे रे भाई
परबत मोर मिता~न
हो हो हो~हो
में बेटा हंव ए धरती के
धरती~~ धरती मोर परान हवे रे भाई
धरती मोर परान
हो हो~~ होहो
हो हो~~ होहो
हो हो~~ होहो
झमकत नदिया~~~~~ बहिनी~~ लागे~~~
हो हो~ हो~हो
झमकत नदिया~~~~~आ~आ~आ बहिनी~~ लागे~~
हो हो~~ होहो
हो हो~~ होहो
हो हो~~ होहो
गीतकार : डॉ.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’
संगीतकार : मलय चक्रवर्ती
स्वर : मोहम्मद रफी
फिल्म : कहि देबे संदेस
निर्माता-निर्देशक : मनु नायक
फिल्म रिलीज : 1965
संस्था : चित्र संसार
‘कहि देबे संदेस’ फिल्म के अन्य गीत
दुनिया के मन आघू बढ़गे … Duniya Ke Man Aaghu Badhge
बिहनिया के उगत सुरूज देवता … Bihaniya Ke Ugat Suruj Devta
तोर पैरी के झनर-झनर … Tor Pairi Ke Jhanar Jhanar
होरे होरे होरे … Hore Hore Hore
तरि नारी नाहना … Tari Nari Nahna
मोरे अंगना के सोन चिरईया नोनी … Mor Angna Ke Son Chiraeaya Noni
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …;
मार्च 02, 2011 @ 08:26:27
हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
मार्च 02, 2011 @ 08:31:38
मनु नायक जी की एक अच्छी तस्वीर यहां http://akaltara.blogspot.com/2010/10/blog-post_25.html है, आप चाहें तो इस्तेमाल कर सकते हैं.
मार्च 02, 2011 @ 08:34:04
जरूर, धन्यवाद
मार्च 02, 2011 @ 19:25:18
Apka lekh sarahniya hai ,bahut bahut Badhai…
agle gane ke intejar mein
मार्च 02, 2011 @ 19:29:33
Sarahniya lekh ke liye badhai…
agle gane ka intejar rahega
मार्च 02, 2011 @ 21:59:51
14 November 1965 ko Durg me release hui Chhattisgarh ki is pahli Film ki bristit jankari ke liye aapko shukriya. Pata nahi kya karan hai ki is film ke bad kai dashakon tak Chhattisgarhi Filmo ki anugunj shiddat ke saath sunai nahi di? Ab to Chhattisgarhi Filmo ka dour chal raha hai jin-me Bolleywood ka prabhav kuchh jyada hi dikhata hai.
मार्च 03, 2011 @ 10:30:28
उम्दा जानकारी.. शानदार लेखन..
मार्च 03, 2011 @ 21:56:51
इस कालजयी फिल्म के संबंध में तथ्यात्मक व क्रमबद्ध जानकारी देने के लिए जाकिर भाई का बहुत बहुत धन्यवाद. छत्तीसगढ़ी फिल्मों के संबंध में यह कालजयी आलेख है भाई, अगले अंकों का इंतजार रहेगा।
यह मेरा प्रिय ब्लॉग है, मैं इस ब्लॉग का फीड़ सब्सक्राईबर हूं, मोबाईल से पोस्ट पढ़ता हूं इस कारण टिप्पणी नहीं लिख पाता।
मार्च 04, 2011 @ 07:38:42
धन्यवाद, आपकी टिप्पणीयों का इंतजार रहेगा…
मार्च 04, 2011 @ 13:09:50
जाकिर मैंने पहले भी इसे पढा था अच्छा लगा …………सतीश
मार्च 04, 2011 @ 19:23:14
Excellent! Keep it up.
Jakir bhai lage raho.
patrakarita ke field me apna jhanda buland karate rao!
मार्च 04, 2011 @ 21:05:09
Janab Zakir Hussain Sahab,
Got ur article n read it . Very well written, thoroughly investigated and extremely interesting piece of work.Enjoyed reading it as its full of knowledge.Thanks a lot for forwarding it to me. Now waiting eagerly for Ghar Dwar as this film has a great sentimental value for me.Looking forward to it.
take care
Huma Aftab Nasir
मार्च 04, 2011 @ 23:36:58
hy bhut achhi website hai mujhe bahut pasand aiiiii….I will do as possible as me.
मार्च 05, 2011 @ 09:15:41
The Song is Extremely Wonderful. It keeps me reminded of Mere Desh Ki Dharti—-
The song has touch of our MAATI, DESHBHAKTI,LOVE to NATURE………
Wonderful Song……..
I must congratulate Md. Zakir Bahi Hussain; being a Journalist he wonderfully has presented;;;;;Hats Off……Dr.G.R.Sinha, Profesoor & Head (IT), SSCET Bhilai
मार्च 05, 2011 @ 13:10:52
Dear Zakir,
Tumhara mail milne ke baad maine site khola. Achchha laga ki tumharee creativity banee huee hai. Halanki sabkuchh purana hee hai, lekin nyapan liye hue. likhte raho. subhkamnayen.
मार्च 06, 2011 @ 05:14:55
well done zakir bhai, aise hi gyanvardhak lekh aur jaankari par aadharit patrkarita aapko nayi disha aur soch deti rahe. shubh kamnayein. alison.england.
मार्च 07, 2011 @ 16:37:39
Thank you for your contribution to the Chhattisgarhi Language , song, movie, culture and Lovers of this colour full land. It is really worth collection . I am a musician who appriciate your effort . My best wishes are with you. Keep it up .
C.R.Sahu
मार्च 12, 2011 @ 12:39:55
Thanks for this very useful Article Zakir ji, i am also from Chhattishgarh(Surguja-Surajpur), right nw working in Noida as an Animator.
I like this website n the information it has. Best of luck for ur future.
मार्च 14, 2011 @ 13:31:34
Waah.जय छत्तीसगढ़
Bhuli bisri geeto ko cg k logo tak pahuchane k liye mai apke pure team ka hriday se abhari hu. En geeto ko sun mera man jhum utha.lag mano mai apne hare2 kheto me pahuch gaya hu.
धन्यवाद
अक्टूबर 09, 2011 @ 14:51:41
Shaandar jaankari ke liye dhanyavad…
अक्टूबर 15, 2011 @ 14:08:31
it is nice to hear that RAfi Sahab have sung The FIRST CHATTISGARHI SONG
फरवरी 01, 2012 @ 14:24:23
शानदार लेखन.
मार्च 11, 2012 @ 17:27:34
jai chhattisgarh………..
lajawab hai……
thanks…
मार्च 11, 2012 @ 17:32:59
jai chhattisgarh……
sumadhur sangeet….
thanks
मार्च 19, 2012 @ 01:07:28
I am also commenting to let you understand what a excellent experience my wife’s princess enjoyed viewing your site. She noticed plenty of things, which include how it is like to have a very effective coaching heart to make folks just thoroughly grasp certain multifaceted issues. You actually did more than readers’ expected results. Thanks for offering such necessary, trustworthy, edifying and also unique tips about that topic to Jane.
अप्रैल 14, 2012 @ 23:42:23
Apne wah chiz batai hai jise jankar chhattisgrh mata ke sapooto par garv mahsoos hota hai .
जून 16, 2012 @ 10:53:06
Is Kaljayee Amer Kritee ke liye Aapako awam Samast logon ko jinke Bhagirathi prayas se ye Sapana sakar huwa,koti koti badhaee -Jai chhattishgarh.
जनवरी 17, 2014 @ 00:24:22
ese nayab geet likhane .gane walo ko naman.
दिसम्बर 03, 2014 @ 14:46:24
pahili bar jhamakat nadiya bahini lage 7baras umar me sune rehehew au filim la dekhe rehew gana sune ke bad o din yaad aat rihis.
मार्च 15, 2016 @ 18:30:31
मुझे अपने लोकसंगीत पर बहुत गर्व है जिसमें रफी साहब,पं• हरि प्रसाद चौरसिया,मन्ना डे जैसे महान हस्तियों ने अपनी कलाकृतियों से लोगों के संगीत लोकसंगीत को एक नया आयाम दिया गया
मई 10, 2016 @ 02:20:06
बहुत अएच
जून 25, 2016 @ 22:17:55
Bane lagish