पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म कहि देबे संदेस के निर्माता-निर्देशक श्री मनु नायक जी से आप तक पहुँचाने के लिए फिल्म के गानों का ऑडियो और फोटोग्राफ प्राप्त हुआ है।
आज लाए है आपके लिए ‘कहि देबे संदेस’ फिल्म का चौथा गीत…
कहि देबे संदेस
छत्तीसगढिय़ा मिठास घोली थी बंगाली मलय चक्रवर्ती ने
फिल्म ‘कहि देबे संदेस’ में अपनी धुनों का जादू जगाने वाले संगीतकार मलय चक्रवर्ती ने सीमित फिल्मों में ही संगीत दिया है। लेकिन, फिल्मी दुनिया में उनका योगदान उत्कृष्ट गायक-गायिकाओं की जमात तैयार करने में ज्यादा है। प्रख्यात नृत्याचार्य पं.उदय शंकर के ग्रुप का हिस्सा रहे मलय चक्रवर्ती ने 50 के दशक में एन.मूलचंदानी की नलिनी जयवंत और मोतीलाल अभिनीत फिल्म ‘मुक्ति’ में संगीत दिया था। जिसमें लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी और आशा भोंसले ने अपनी आवाज का जादू जगाया था। ‘मुक्ति’ की अपार सफलता के बाद उन्हें वी.शांताराम जैसे निर्देशकों ने अपनी फिल्म में अनुबंधित किया लेकिन ‘कमबख्त बीड़ी’ की आदत ने श्री चक्रवर्ती को राजकमल कला मंदिर से दूर कर दिया। इस बारे में पूरी बात खुद मनु नायक की ज़ुबानी सुनेंगे, पहले मनु नायक से सुनिए कि कैसे उन्होंने जमाल सेन की जगह मलय चक्रवर्ती को अपनी फिल्म में अनुबंधित किया।
मनु नायक फरमाते हैं – ‘मुक्ति’ के निर्माता एन.मूलचंदानी संगीत के रसिक थे और उन्होंने चक्रवर्ती साहब के लिए अपने दफ्तर में एक जगह तय कर दी थी कि वो यहां आकर रोज उन्हे कोई न कोई धुन सुनाएंगे। मूलचंदानी जी के दफ्तर के ठीक बगल में हमारा अनुपम चित्र का दफ्तर था। ऐसे में चक्रवर्ती साहब की गाते हुए जब ऑफिस से बाहर आवाज आती थी तो उनकी आवाज में ऐसी कशिश थी कि दिल खिंचा चला आता था। एक-दो दिन तो मैनें नजर अंदाज किया लेकिन बाद में मैनें पता लगाया तो मालूम हुआ कि उनके म्यूजिक डायरेक्टर हैं। इसी दौरान संगीतकार जमाल सेन साहब भी हमारी कंपनी से जुडऩे के लिए बहुत कोशिश कर रहे थे। जमाल सेन साहब को मैनें ही महेश कौल साहब से मिलवाया था। ऐसे में मैनें सोच रखा था कि ‘कहि देबे संदेस’ में मैं उन्हे ही लूंगा। लेकिन चक्रवर्ती साहब को सुनने के बाद जमाल सेन साहब थोड़े फीके लगने लग गए। हालांकि दोनों ही गुणी आदमी थे। लेकिन ठीक है, अब भाग्य जिस का था। फिर चक्रवर्ती साहब की फिल्म इंडस्ट्री में इतनी इज्जत थी कि वह जिस सिंगर को बोलें गाने के लिए वो तत्काल तैयार हो जाएं। ऐसे में रिकार्डिंग की तारीख तय करने हमारे लिए बहुत ही सहूलियत हो गई। चक्रवर्ती साहब की आदत ऐसी थी कि वह पहले धुन बनाते थे, यदि उस दौरान मौजूद सारे लोगों को धुन पसंद आ जाए तो ही वह गीत लिखवा कर उसकी रिकार्डिंग की तारीख तय करते थे। चक्रवर्ती साहब अनुशासन के सख्त पाबंद तब भी थे और आज 80 पार होने के बाद भी हैं। आज वह बीड़ी तो नहीं पीते हैं लेकिन उनका छाता आज भी उनके साथ होता है। अब उन्हें आंखों से कम दिखाई देने लगा है। लेकिन मिलने और हाल-चाल पूछने घर तक जरूर आते हैं। फिलहाल पिछले छह माह से वह हमारे घर नहीं आए हैं।
चक्रवर्ती साहब द्वारा ‘मुक्ति’ में दिए संगीत से प्रभावित होकर वी.शांताराम ने अपनी संस्था राजकमल कला मंदिर में उन्हें अनुबंधित कर लिया था। जब पहली बार चक्रवर्ती साहब उन्हें अपनी धुन सुनाने बैठे तो इसके पहले वह बीड़ी सुलगा रहे थे। वहीं वी.शांताराम स्टूडियो में ऐसी अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं कर सकते थे। लिहाजा, शांताराम जी ने चक्रवर्ती साहब के सामने शर्त रख दी कि आप जितने घंटे इस स्टूडियो में रहेंगे, बीड़ी बिल्कुल नहीं पीएंगे। शांताराम जी की यह शर्त सुन चक्रवर्ती साहब नाराज हो गए और तुरंत अपना छाता पकड़ा और वहां से निकल लिए। इसके बाद चक्रवर्ती साहब हिंदी फिल्मों में नहीं जम पाए। कुछ बांग्ला फिल्मों में उन्होंने संगीत दिया। मेरी फिल्म ‘कहि देबे संदेस’ के बाद ‘पठौनी’ में भी चक्रवर्ती साहब ने संगीत दिया।
चक्रवर्ती साहब मूलतः पं.उदय शंकर के लिटिल बैले ग्रुप के मुख्य गायक थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने पंचशील सिद्धांत के आधार पर लिटिल बैले ग्रुप जैसे सांस्कृतिक समूहों को मान्यता दी थी जो विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार करे। इस ग्रुप में पं.रविशंकर सितार वादक और पं.उदय शंकर नृत्य निर्देशक थे। इसी ग्रुप से पं.हरिप्रसाद चौरसिया सहित कई दूसरे युवा कलाकार भी जुड़े हुए थे। जब यह ग्रुप टूट गया तो चक्रवर्ती साहब को राजा मेहंदी अली खां मुंबई की फिल्मी दुनिया में ले आए।
हालांकि चक्रवर्ती साहब ‘मुक्ति’ और ‘कहि देबे संदेस’ के अलावा दूसरा बड़ा काम मुंबई में रहते हासिल नहीं कर सके। इसी दौरान उन्होंने फिल्मों में संगीत देने के बजाए संगीत की शिक्षा देने का फैसला ले लिया। उनके शिष्यों में कविता कृष्णमूर्ति, मीनू मुखर्जी (हेमंत कुमार की बेटी), छाया गांगुली, आरती मुखर्जी, और आज के गायक शान के पिता मानस मुखर्जी जैसे लोगों का नाम शुमार है। तब हालत यह थी कि गायकी में जिन्हें भी आना है तो वह चक्रवर्ती साहब के पास पहुंच जाता था। यहां तक कि वरिष्ठ संगीतकारों में हेमंत कुमार मुखर्जी अपनी बेटी को चक्रवर्ती साहब के पास संगीत सीखने के लिए भेजते थे साथ ही खुद भी चक्रवर्ती साहब से संगीत के गुर सीखते थे। इन दिनों चक्रवर्ती साहब मुंबई के जुहू इलाके में रहते हैं।
ऐसे जगा पं.हरिप्रसाद चौरसिया की बांसुरी का जादू
‘कहि देबे संदेस’ के संगीत का एक और सशक्त पक्ष यह भी है कि फिल्म में गीतों से लेकर पार्श्व में जहां कहीं भी बांसुरी के स्वर सुनाई देते हैं वह सब खुद पं.हरिप्रसाद चौरसिया के बजाए हुए हैं। खास कर के ददरिया शैली के गीत ‘होरे…होरे…होरे…होर’ को सुनकर इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है। फिल्म का संगीत पक्ष सशक्त रखने मनु नायक ने किस तरह की पहल की खुद उन्हीं की ज़ुबानी सुनिए – “जब चक्रवर्ती साहब से फिल्म के संगीत को लेकर चर्चा चल रही थी तब यह बात उठी कि आर्केस्ट्रा कितना बड़ा रखा जाए और कितने साज़िंदे हों? मैनें चक्रवर्ती साहब से कहा कि देखिए यहां तो साधारण बजट की फिल्म में भी आर्केस्ट्रा में 70 से 100 साज़िंदे होते हैं। लेकिन हमारा बजट बेहद सीमित है, हम इतना नहीं कर पाएंगे। ऐसे में चक्रवर्ती साहब ने 10 से 15 साज़िंदों के साथ गीत रिकार्ड करने अपनी सहमति दी लेकिन इसके साथ ही उनकी शर्त यह थी कि सारे साज़िंदे ए ग्रेड या एक्स्ट्रा स्पेशल ए ग्रेड के लोग होने चाहिए। तब साज़िंदों में ए-बी-सी तीन ग्रेड होते थे। इसके उपर भी एक्स्ट्रा स्पेशल ए ग्रेड हुआ करता था। इस ग्रेड में पं.हरिप्रसाद चौरसिया आते थे। सभी साज़िंदों का पारिश्रमिक भी ग्रेड के हिसाब से होता था। इस आधार पर चक्रवर्ती साहब ने सबसे पहले पं.हरिप्रसाद चौरसिया को अनुबंधित किया। इसके बाद ए ग्रेड के सुदर्शन धर्माधिकारी और इंद्रनील बनर्जी भी अनुबंधित किए गए। सुदर्शन धर्माधिकारी को ठेका, तबला और पखावज में महारत हासिल थी वहीं सितार वादन में इंद्रनील बनर्जी का कोई सानी नहीं था। ऐसे गुणी साज़िंदों को लेकर हमनें सारे गीत और पार्श्व संगीत रिकार्ड किए।”
श्री मनु नायक से निम्न पते पर संपर्क किया जा सकता है-
पता : 4बी/2, फ्लैट-34, वर्सोवा व्यू को-आपरेटिव सोसायटी, 4 बंगला-अंधेरी, मुंबई-53
मोबाइल : 098701-07222
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आगे पढ़िए . . . अगले गीत में
प्रस्तुत आलेख लिखा है श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी ने। भिलाई नगर निवासी, जाकिर जी पेशे से पत्रकार हैं। प्रथम श्रेणी से बीजेएमसी करने के पश्चात फरवरी 1997 में दैनिक भास्कर से पत्रकरिता की शुरुवात की। दैनिक जागरण, दैनिक हरिभूमि, दैनिक छत्तीसगढ़ में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं देने के बाद आजकल पुनः दैनिक भास्कर (भिलाई) में पत्रकार हैं। “रामेश्वरम राष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता” का प्रथम सम्मान श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी को झांसी में दिसंबर 2004 में वरिष्ठ पत्रकार श्री अच्युतानंद मिश्र के हाथों दिया गया।
मोहम्मद जाकिर हुसैन
(पत्रकार)
पता : क्वार्टर नं.6 बी, स्ट्रीट-20, सेक्टर-7, भिलाई नगर, जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मोबाइल : 9425558442
ईमेल : mzhbhilai@yahoo.co.in
पेश है आज का गीत …
होरे होरे होरे होरे~~~~~ऐ
होओ~~~ होओ~~~ हो~~~ओ~~~ओ
कोयली रे कुके आमा के डार मा~~~~आ
चले आबे पत~~रेंगी रे~~ होरे होरे~
नवा तरइया पार मा~~~आ
चले आबे पत~~रेंगी रे~~ होरे होरे~
होरे होरे होरे होरे~~~~~ऐ
होओ~~~ होओ~~~ हो~~~ओ हो~~~ओ
रेती के पेरई मा हिटय नाही ते~~ल
दोस्त डारी के~~ निभई रे~~ होरे होरे~
नोहे गा हांसी खे~~ल
दोस्त डारी के~~ निभई रे~~ होरे होरे~
हो~हो~~ओ होओ होओ हो~~ओ हो~~~~ओ
दू दिन के दुनिया वो~ दू दिन के रू~~~प
ढल जाहि गोरी तो~~र जवानी के धू~~~प
हो~हो~~ओ होओ होओ हो~~ओ हो~~~~ओ
आमा ला गिराएव खाहुंच कहि के~~
कइसे दगा दिए राजा आंहुच कहि के~~
होरे होरे होरे होरे~~~~~ऐ
होओ~~~ हो~ओ~~~ हो~~~ओ हो~~ओ~~~ओ
तैं चंदा के रानी सुरूज के अंजोर~~~
बांधी लेही जीव~~ ल तोर अच~~रा के छोर~~
होरे होरे होरे होरे~~~~~ऐ
होओ~~~ होओ~~~ हो~~~ओ हो~~~ओ
कईसे पतियांव मैं बतिया ला तोर~~
मुंह मिठवा~~ मोर राजा~~ तैं दिल के कठो~~र
हो~हो~~ओ होओ होओ हो~~ओ हो~~~~ओ
सुआ पाखी तोर लुगरा अढ़ाई कोरी फूल~~उ~
गोरी जीव ल चुरा के समय मा~~ गए भू~~ल
हो~हो~~ओ होओ होओ हो~~ओ हो~~~~ओ
मन ल रोकेव रुकई जानत नई ये~~
तोला देखे बिन बइहा~~ मानत नई ये~~
होरे होरे होरे होरे~~~~~ऐ
होओ~~~ हो~ओ~~~ हो~~~ओ हो~~ओ~~~ओ
झन जाबे गंगा ते झन जाबे तीरि~~थ
राखे रहिबे चिरई~या पहिली~~ के पीरि~~त
होरे होरे होरे होरे~~~~~ऐ
होओ~~~ होओ~~~ हो~~~ओ हो~~~ओ
नवा रे हंसिया के जुन्हा हवय बें~~ठ
जीयत रहिबो~~ राजा तो होई~~ जाई भें~~ट
पं.हरिप्रसाद चौरसिया महेंद्र कपूर मीनू पुरुषोत्तम
गायन शैली : ददरिया
गीतकार : डॉ.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’
संगीतकार : मलय चक्रवर्ती
स्वर : महेंद्र कपूर, मीनू पुरुषोत्तम
फिल्म : कहि देबे संदेस
निर्माता-निर्देशक : मनु नायक
फिल्म रिलीज : 1965
संस्था : चित्र संसार
विशेष : इस गीत में पं.हरिप्रसाद चौरसिया के बांसुरी वादन का जादू महसूस किया जा सकता है।
‘कहि देबे संदेस’ फिल्म के अन्य गीत
दुनिया के मन आघू बढ़गे … Duniya Ke Man Aaghu Badhge
झमकत नदिया बहिनी लागे … Jhamkat Nadiya Bahini Lage
बिहनिया के उगत सुरूज देवता … Bihaniya Ke Ugat Suruj Devta
तोर पैरी के झनर-झनर … Tor Pairi Ke Jhanar Jhanar
होरे होरे होरे … Hore Hore Hore
तरि नारी नाहना … Tari Nari Nahna
मोरे अंगना के सोन चिरईया नोनी … Mor Angna Ke Son Chiraeaya Noni
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …;
मार्च 22, 2011 @ 12:42:49
adhbhut aanand aais bhaiya ye la sun ke
aap mann la naman
मार्च 22, 2011 @ 19:50:11
महत्वपूर्ण जानकारी के साथ मधुर प्रस्तुति. फोटुओं के अनुपात का कृपया ध्यान रखें.
मार्च 26, 2011 @ 16:24:32
kahi debe sandes ke sugghar jankari de bar , bahutech barhiya lekh bar , au madur geet bar aap la gada-gada badhai . abhi jaun dadriya mai sune rahe okhar se bilkul alag havay . bisvas nai hovat he ki dadriya aisno dhun ma atek sughghar gaye ja sakat hai .
sath hi aapke bare me jankari pake bad nik lagis . aap to kafi samay le patrkaita karat hav . likhi aap ke foto se aapke umar ke andaja nai hovay . ha fer chahe blag hovay ya samachar patra ma aap kamal ke likhathav . au ihi aapke salo ke anubhav la bayan karthe .
मार्च 27, 2011 @ 06:23:07
ye chhattisgarhi song or dadaria song jaise lagat he! jammo jhan la yekar liye gada gada badhai. vishesh rup se Zakir Bhai la bhi gada gada badhai; because
“Being awarded for Hindi Journalism, he is publicizing the essence of Chhattisgarh, i.e. true love, true devotion to your loved one. This carries a wider message also like binding the love and peaceful relation between India and neigbouring countries.
Kudos….Congratulations and Thanks to ZakirJi, please keep on doing so….
अप्रैल 07, 2011 @ 14:32:30
pahli baar dadariya la mahendra kapoor ke awaj me sun man bhav vibhor hoge ye pahli git hare taise lagthe m.kpoor ke awaj me chhattishgarhi gana la sune hav ye film la me vijay talkies bhelai me dekhe rehev okar bad fer mouka nai milis ap man se request he ye picture net ma down load kartev to sabo chhattish garhiya bhai man la dekhe au ghar ghar dekhay ke saubhagya prapt hotish,hamar c g ke purana purana git sangit la khoj ke lanat hav tekar bar bahut bahut badhai ji. jai chhattish garh jai bharat
अक्टूबर 29, 2011 @ 23:51:04
BALRAM SONWANI-9907758042
is song ko may pure raipur city me sarch keye lekin nhi mila thanksh wordprees
अक्टूबर 29, 2011 @ 23:52:41
is song ko may pure raipur city me sarch keye lekin nhi mila thanksh wordprees
अगस्त 07, 2012 @ 16:35:11
ye geet ha chattisgarhi ma amar prem k geet aay geet la sun k pachhu deen k yad taja hoi gis
मार्च 04, 2014 @ 22:54:43
cg song karma ,dadariya my best song
अक्टूबर 08, 2014 @ 10:28:52
bad sughghar lag the ye mati ma maya k boli au rag
दिसम्बर 15, 2014 @ 14:44:24
Mahendra kapoor Meenupuroshottam ke awaj chaurasiya ji ke bansuri dr. hanumant naidu ke rachna au malay chakrawarti ke sangit .chattisgarh ke thar thar la oman janat rihis aise lagthe .
अक्टूबर 20, 2015 @ 11:08:45
thannnxxxxxx friendsss
mujhe Mohammad Aziz SB ka chattishgarhi song chahiye please share kijiye
Maine Dada Mohd Aziz SB she baat ki this to o bole the cg song Dada me 6″7 song gaaye han please share kare
अक्टूबर 20, 2015 @ 11:12:58
thannnxxxxxx friendsss
mujhe Mohammad Aziz SB ka chattishgarhi song chahiye please share kijiye
नवम्बर 28, 2015 @ 13:37:30
हमर तो मन गदगद हो भईया. ….
अति आनंदमय
जनवरी 18, 2017 @ 07:55:50
मस्त लागिस जी।।।।।।
मई 15, 2017 @ 13:21:16
हमर तो मन गदगद हो भईया. ….
जून 13, 2017 @ 19:31:07
छत्तीसगढ़ की सरकारी नौकरियां http://www.Rojgaralert.Online
जुलाई 07, 2017 @ 21:08:46
Jai johar
अक्टूबर 26, 2017 @ 21:12:45
बहुत ही सुंदर संग्रह राजेश भैया।अंतस ले आभार
मार्च 21, 2018 @ 06:14:57
Man ko moh lene wala git hai Bahunt hi sunder yah git hai Jay Ho chhattishgarh mahatari la