आज से रायपुर में इप्टा के मुक्तिबोध नाटक समारोह शुरू होवत हे जेहा 13 नवंबर 2010 से 18 नवंबर 2010 तक चलही । इही मौका मा मोला सुरता आवत हे “डोकरा के देखेंव मैं सियानी” …
हबीब तनवीर के निर्देशन में “गाँव के नाँव ससुरार मोर नाँव दमाद” नाटक के पहिली प्रस्तुति मोतीबाग, रायपुर में 1973 में होय रिहिस ।
हबीब तनवीर
नाटक में मदनलाल निषाद ह झंगलू के, लालू राम साहू ह मंगलू के, फ़िदाबाई मरकाम ह मान्ती के, मालाबाई सोनवानी ह शांति के, बाबुदास बघेल ह शांति के बाप के, ठाकुर राम ह बुढ़वा के, मजीद खान ह टेड़हा के अउ बृजलाल लेंजवार ह देवार के भुमिका ल निभावय ।
नाटक में गीत गावय भुलवा राम यादव, बृजलाल लेंजवार, देवीलाल नाग, मालाबाई सोनवानी, फ़िदाबाई मरकाम, फुलू बाई, कौशल्या बाई सोनवानी, लालू राम, जानकी बाई, मोहिनी बाई, दफरी बाई अउ सुशीला बाई ह ।
नाटक में हारमोनियम ल देवीलाल नाग ह, तबला ल अमरदास मानिकपुरी ह, क्लेरिनेट ल जगमोहन कामले ह, मजीरा ल मजीद खान ह अउ ढोलक ल गणेश प्रसाद ह बजावय ।
नाटक में वेशभूषा के चयन मोनिका मिश्र तनवीर ह करय ।
अब नाटक के थोड़ किन कहानी हो जाए – पूस पुन्नी (शरद पूर्णिमा) के दिन के तिहार ए ‘छेर-छेरा’ । ये दिन नौजवान लड़का मन घर-घर जा के धान, अनाज व सब्जी वगेरा मांग के जमा करथे अउ बाद में सबो झन सकला के तिहार के मौका मा मजा करथे, पिकनिक मनाथे । “डोकरा के देखेंव वो दाई~ डोकरा के देखेंव मैं सियानी वो” गीत गात गात नाटक शुरू होथे । छेरछेरा तिहार के दिन झंगलू अउ मंगलू गाँव के दु झन लड़का मन शांति अउ मान्ती संग छेड़छाड़ करथे, छेड़छाड़ करत-करत झंगलू ल मान्ती से प्रेम हो जथे । कुछ समय बाद मान्ती के बाप ह गरीब झंगलू के बजाय एक डोकरा मालदार सरपंच संग मान्ती के शादी कर देथे । झंगलू अपन संगवारी मन के साथ मान्ती ल खोजेबर निकलथे । लड़का मन देवार मन के भेष में सरपंच के गाँव पहुँच थे । उंहा पहुँच के सरपंच डोकरा ल आनीबानी ले छेड़थे अउ ओला बेवकुफ बनाथे । उही समय गाँव में गौरा-गौरी (शंकर पार्वती) के पूजा होवत रइथे जेमा मान्ती घलो आए रिथे । झंगलू ह ओला देख डारथे तहान फेर तरकीब लगा के अपन प्रेमिका मान्ती ल भगा के ले जथे । नाटक ह प्रेम के जीत के तीन-चार गीत गावत गावत खतम हो जथे ।
आप मन “सास गारी देवे ननंद मुह लेवे” गीत ल तो सुने होहु, ये गीत ह नाटक के आखरी में गाए गए तीन-चार गीत में से एक हरय ।
गंगाराम शिवारे
त सुने जाय आज के गीत
डोकरा के देखेंव वो दाई~ डोकरा के देखेंव मैं सियानी वो~~
गुनेला भइगे, डोकरा के देखेंव मैं सियानी~~
बुढ़ूवा के देखेंव वो दाई~ बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी वो~~
गुनेला भइगे, बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
दाई ददा पइसा के लोभी~~~ बुढ़वा सन रचे बिहावे
डोकरा सन रचे बिहा~वे~ रे भाई~~
हांसथे सब पारा परोसी~~~ अउ थोरको नई लजावे
अउ चिटको नई शरमा~वे~ रे भाई~~
दुखिया के सुनले वो दाई~ दुखिया के सुनले ये कहानी वो~~
गुनेला भइगे, डोकरा के देखेंव मैं सियानी~~
बुढ़ूवा के देखेंव वो दाई~ बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी वो~~
गुनेला भइगे, बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
पंच अउ राजा महराजा~~~ अउ येकर करो बिचारे
अउ येकर करो बिचा~रे~ रे भाई~~
ये भव सागर अगम भरे हे~~~ अउ कइसे उतरव पारे
अउ कइसे उतरव पा~रे~ रे भाई~~
कइसे के काटंव दाई~ कइसे के काटंव जिंदगानी हो~
गुनेला भइगे, डोकरा के देखेंव मैं सियानी~~
बुढ़ूवा के देखेंव वो दाई~ बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी वो~~
गुनेला भइगे, बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
ये बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
ये बुढ़ूवा के देखेंव मैं सियानी~~
गायन शैली : ?
गीतकार : गंगाराम शिवारे
रचना के वर्ष : 1972-73
गायन : फ़िदाबाई मरकाम, कौशल्या बाई सोनवानी, भुलवा राम यादव
हारमोनियम – देवीलाल नाग
तबला – अमरदास मानिकपुरी
क्लेरिनेट – जगमोहन कामले
मजीरा – मजीद खान
ढोलक – गणेश प्रसाद
संस्था/लोककला मंच : नया थियेटर
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …
संगी मन के गोठ …