गुलाम भारत में किए गए भाषायी सर्वेक्षण के रिकार्डिंग को ब्रिटिश सरकार ने संजो रखा है। आजादी के बाद, लगभग सौ साल पुराने ये रिकार्डिंग ब्रिटिश लाइब्रेरी में सुरक्षित रहे। शिकागो यूनिवर्सिटी ने अपने डिजीटल साउथ एशिया लाइब्रेरी में इसे सार्वजनिक किया है। करीब सौ साल पुराने इस धरोहर को अमेरिका की शिकागो युनिवर्सिटी की वेबसाइट http://dsal.uchicago.edu/lsi/ पर छत्तीसगढ़ी समेत भारत की दूसरी भाषाओं और बोलियों के लोकगीतों और लोककथाओं के 241 रिकार्डिंग पढ़ी और सुनी जा सकती हैं।
1857 के महान विद्रोह को कुचलने के पश्चात् भारत में गहरी पैठ बनाने और औपनिवेशिक राज्य के पुनर्गठन हेतु भारतीय लोगों और वस्तुओं से सम्बंधित जानकारीयों का व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से वर्गीकृत रूप में दस्तावेजीकरण किया गया। यह काल भारतीय साम्राज्य में अनेक बड़े सर्वेक्षणों के योजनाओं के बनने और निष्पादन होने का गवाह रहा है जैसे पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey), भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey), नृवंशविज्ञान सर्वेक्षण (ethnographic survey) (बाद में छोटे, प्रांतीय श्रृंखला में विभाजित) तथा भाषाई मानचित्रण सर्वेक्षण (linguistic mapping)।
इंडियन सिविल सर्विस में बंगाल और बिहार केडर से संबंधित भाषाविद् जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन को भारत में भाषायी सर्वेक्षण (Linguistic Survey of India – LSI) के प्रणोता के रूप में जाना जाता है। 7 जनवरी, 1851 में डब्लिन में पैदा हुए हिंदुस्तानी और संस्कृत के जानकार भाषाविद् ग्रियर्सन 1873 में पहली बार इंडियन सिविल सर्विस के अधिकारी बन कर भारत आए थे। 1886 में वियेना में हुए तीसरे ओरिएंटल काँग्रेस में औपनिवेशिक सरकार ने ग्रियर्सन के आग्रह पर “भारत की भाषाओं का व्यवस्थित सर्वेक्षण” हेतु परियोजना के प्रस्ताव को पारित किया। लेकिन परियोजना अलग-थलग या कहें बंद पड़ी रही, पहली बार 1894 में जिला अधिकारियों को उनके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत भाषाओं और बोलियों की सूची संकलन करने को कहा गया। सरकार द्वारा सर्वे के लिए ग्रियर्सन के विशेष अधिकारी के रूप में नियुक्ति होने तक अगले चार साल यूँही गुजर गए। उनकी अध्यक्षता में पहली बार 1898 में भारतीय भाषाओं का सर्वेक्षण हुआ, उन्हें शिमला में एक छोटा सा कार्यालय दिया गया जहाँ द्विभाषी देशी भाषा शास्त्री जिलों में एकत्रित नमूनों की प्रेस प्रतियां तैयार किया करते थे। 1899 के आखिर तक यह कार्य बंगाली हेडक्लर्क के देखरेख में हुआ। ग्रियर्सन को इसके संपादन का कार्य इंग्लैंड में रहकर करने की विशेष अनुमति दी गई थी। अगले तीस वर्षों तक केम्बर्ले के अपने बंगले में रहते हुए, ग्रियर्सन ने भारतीय भाषाओं और बोलियों के सर्वेक्षण के विशाल उन्नीस भागों वाले ग्यारह संस्करणों का संपादन किया।
33 वर्षों के अनवरत परिश्रम के फलस्वरूप यह कार्य सन् 1927 ई0 में समाप्त हुआ। मूलतः यह ग्यारह खण्डों में विभक्त है। अनेक खण्डों (खण्ड एक, तीन, पॉच, आठ एवं नौ) के एकाधिक भाग हैं। ग्यारह हजार पृष्ठों का यह सर्वेक्षण-कार्य विश्व में अपने ढंग का अकेला कार्य है। विश्व के किसी भी देश में भाषा-सर्वेक्षण का ऐसा विशद् कार्य नहीं हुआ है। प्रशासनिक अधिकारी होते हुए आपने भारतीय भाषाओं और बोलियों का विशाल सर्वेक्षण कार्य सम्पन्न किया। चूँकि आपका सर्वेक्षण अप्रत्यक्ष-विधि पर आधारित था, इस कारण इसमें त्रुटियों का होना स्वाभाविक है। सर्वेक्षण कार्य में जिन प्राध्यापकों, पटवारियों एवं अधिकारियों ने सहयोग दिया, अपने अपने क्षेत्रों में बोले जाने वाले भाषा रूपों का परिचय, उदाहरण, कथा-कहाँनियां आदि लिखकर भेजीं, वे स्वन-विज्ञान एवं भाषा विज्ञान के विद्वान नहीं थे। अपनी समस्त त्रुटियों एवं कमियों के बावजूद डॉ.ग्रियर्सन का यह सर्वेक्षण कार्य अभूतपूर्व है।
सर्वेक्षण मुख्यतः नमूनों के संग्रहण पर केंद्रित था जिसमें मानक परिच्छेद का चुनाव तुलना के उद्देश्य से किया जाता था। सभी भाषा और बोलियों के संग्रहण हेतु नमूनों के तीन आधारभूत हिस्से होते थे – मानक अनुवाद, स्थानीय बोलचाल के आधार पर तैयार लेखांश, और 1866 में बंगाल एशियाटिक सोसायटी द्वारा शब्दों और वाक्यों की तैयार की गई मूल सूची।
टेम्पलेट परिच्छेद के रूप में “उड़ाऊ पुत्र के दृष्टान्त का एक संस्करण है, जिसमें शब्दों के अर्थ के कारण पैदा होने वाले पूर्वाग्रहों से बचने के लिए मामूली फेरबदल की जाती थी” दृष्टान्त चुना गया था। दृष्टान्त के चुनाव के संबंध में ग्रियर्सन ने फुटनोट में लिखा है – “क्योंकि इसमें तीन व्यक्तिगत सर्वनाम शामिल हैं, तथा ज्यादातर संज्ञा विभक्ति के रूप में प्रयुक्त है और वर्तमानकाल, भूतकाल तथा भविष्यकाल में क्रिया प्रयुक्त है।” यह दृष्टान्त तुलनात्मक विश्लेषण के लिए प्रयोग किया पहला प्रमाणित परिच्छेद था, जिसमें यह नहीं लिखा गया था कि स्थानीय लोग इस कहानी को कैसे कहें। इसका उद्देश्य प्रत्येक अनुवादक के घरेलु भाषा में सहज रूप में कहें जा रहे नमूनों को प्राप्त करने का था। अंगेजी साक्षर लोगों से अंग्रेजी बाइबिल को उनकी ‘मातृभाषा’ में अनुवाद कराया गया। तत्पश्चात इनके संस्करण से अन्य द्विभाषी भारतीयों से सभी ज्ञात भारतीय भाषाओं में अनुवाद कराया गया जिसके लिए इन संस्करणों को विशेष रूप से छपवाया गया। एक महत्वपूर्ण अर्थ में, यह द्विभाषी भारतीयों द्वारा भारतीय भाषाओं में अनुवाद कि स्मरणीय परियोजना थी।
इन नमूनों से ग्रियर्सन ने विभिन्न भाषाओं और बोलियों की व्याकरणिक और अन्य विशेषतागत लक्ष्णों कि पहचान की, साथ ही उन्होंने सभी भाषाओं का संक्षिप्त परिचय उप्लब्ध कराया जिसमें इसके विभिन्न बोलियों में भेद, बोलनेवालों की संख्या, भाषागत व्यवहार और उसके साहित्य के साथ आखिर में व्याकरण की रुपरेखा दर्ज थी। जिसमें तब के भारतीय साम्राज्य (बर्मा, हैदराबाद, मैसूर राज्य और मद्रास प्रेसीडेंसी के कुछ अंश) की सभी 179 भाषाओं और 544 बोलियों की सामग्री एकत्र की गई। 1903 से 1928 के मध्य ग्यारह संस्करणों व उन्नीस भागों में भारतीय भाषायी सर्वेक्षण का प्रकाशन हुआ। 1927 में इंट्रोडक्टरी संस्करण प्रकाशित हुआ। अगले वर्ष इसमें एक तुलनात्मक शब्दावली तालिका जोड़ी गयी। ग्रियर्सन का अनुमान है कि भारतीय साम्राज्य के 30 करोड़ कुल आबादी में से 22.4 करोड़ आबादी सर्वेक्षण में शामिल हुआ।
1917 में हॉफवे प्रकाशन के माध्यम से, ग्रियर्सन ने भारत में विभिन्न प्रदेशों की सरकारों से पैरवी करने के लिए प्रयुक्त स्थानीय बोलियों के नमूनों को दर्ज करना शुरू किया। जिसका उपयोग बोलचाल व भाषा में बदलाव के प्रामाणिक नमूनों के रूप में रिकार्ड रखने और भारतीय सिविल सेवा के अधिकारीयों को प्रशिक्षित करने में किया जा सके। प्रथम विश्व युद्ध का संकट शुरू होने से पहले ही इसका पहला ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड कर लिया गया था, 1914 से 1929 तक भारत की कुछ लोककथाओं और गीतों के सत्तानबे बोलियों और भाषाओं में कुल 242 ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड तैयार किए गए। जिसमें मद्रास, बर्मा, सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार, यूनाइटेड प्रोविंस, बॉम्बे प्रेसीडेंसी, बंगाल, छोटा-नागपुर, बिहार, उड़ीसा, असम और दिल्ली आदि भाषाई क्षेत्रों को शामिल किया गया। रिकॉर्डिंग के इस कार्य में पंजाब, नॉर्थ वेस्ट प्रोविंस, बलूचिस्तान, कश्मीर, सेंट्रल इंडिया और राजस्थान को शामिल नहीं किया गया था।
मद्रास से 43, बर्मा से 38, सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार से 37, यूनाइटेड प्रोविंस से 33, बॉम्बे प्रेसीडेंसी से 25, बंगाल से 20, छोटा-नागपुर से 17, बिहार और उड़ीसा से 12, असम से 10 और दिल्ली से 6 ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड तैयार किए गए। इसे वर्षवार अनुसार रखे तो 1914 में 17, 1917 में 37, 1919 में 25, 1920 में 51, 1922 में 42, 1927 में 21, 1928-1929 में 10 ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड तैयार किए गए।
आज का छत्तीसगढ़ ब्रिटिश काल में सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार का हिस्सा था। सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार के कुछ लोककथाओं और गीतों को ब्रिटिश सरकार ने 1917 में रिकार्ड किया था। जिसमें बस्तर के गड़बा, परजा, गोंडी, हल्बी, माड़िया के साथ तत्कालीन सरगुजा के कोरवा व कोड़ाकु में लोकगीत व कथाएं शामिल हैं। 1917 में रायपुर के बृजलाल रावत का गाया गीत “सीका में टांगे छबेला” तथा रायपुर के ही रामानंद तिवारी की आवाज में छत्तीसगढ़ी लोककथा को सुनते हुए सौ साल पहले की छत्तीसगढ़ी के अंदाज को समझा जा सकता है। बस्तर के हरि गड़बा, धनो गड़बा, भीम परजा, केसरी गोंड, कन्हाई गोंड, गुरन सिंह हलबा, काना माड़िया, सरगुजा के नाथु कोरवा और जुठन कोड़ाकु की आवाज में छत्तीसगढ़ की बोलियां दर्ज है।
1920 में इलाहाबाद और दिल्ली में उत्तर भारत के कई बोलियों में दो दर्जन ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग की गई, जिनमें चाहे भोजपुर के पंडित बलराम प्रसाद मिश्रा के द्वारा हिंदी में गाया गीत “तरसे जियरा हमार नैहर में”, बनारस से हिन्दी गद्य का सस्वर पाठ, कन्नौज के प्रभुलाल द्वारा वीररस की कविता का पाठ, लखनऊ के लिसनुल्कौम मौलाना सफी का उर्दू नज्म “कल हम आईनें में रुख़ की झुर्रियां देखा किया”, दिल्ली के मीर बकर अली द्वार पढ़ी गई कहानी “एक रईसजादा हैं दीवाना, बरसात का ज़माना है” तथा “बलराम मेरो अलबेलो” दिल्ली की हुसैना द्वारा मेवाती में गाया गाना, हमें बोलने और गायन के तरीकों से शानदार श्रवण और क्रियात्मक अंतर्दृष्टि की अनुभूति कराती है। काफी खर्च और प्रयास से इन ग्रामोफोन रिकॉर्ड को तैयार किया गया, शाब्दिक और मुद्रित दोनों रूप में नमूनों का संग्रहण किया गया, जिनमें मूलनिवासीयों के बोलने की कई लहजे हैं जो “उड़ाऊ पुत्र” की कहानी को अपने विशिष्ट अंदाज में कहते हैं। इन रिकॉर्डिंग का अंग्रेजी अनुवाद के साथ उपलब्धता उनकी महत्व को और बढ़ाता है।
20वीं सदी में भारत में रिकॉर्डिंग की गई इन सभी मूल्यवान ध्वनि संग्रह अभिलेखों को इंटरनेट पर उपलब्ध कराने से लोकतांत्रिक रूप से सभी लोगों तक इसकी पहुँच हो जाती है। छत्तीसगढ़ी, हिंदी, बघेली, बुन्देली, कन्नौजी, नागपुरिया मराठी, बरार मराठी, सर्वरी भोजपुरी (बस्ती में), मेवाती और अहिरवली (गुडगाँव में) आदि भाषाई क्षेत्रों से दर्ज नमूनों को दुनिया भर के शोधकर्ताओं और नई पीढ़ी माउस के सिर्फ़ एक क्लिक से उस समय के स्थानीय लोगों की आवाज को सुन सकते हैं। मैं निश्चित नहीं हूँ कि ग्रियर्सन से भारत सरकार ने भारतीय पुस्तकालय में इसकी एक सेट जमा करने के लिए कहा था क्योंकि 1903 में सरकार के वरिष्ठ पदाधिकारी के आधिकारिक बयान में कहा गया – “भारत सरकार के जानकारी में ऐसा कोई भी अखबार नहीं है जो भाषाई सर्वेक्षण के संस्करणों की समीक्षा करने में सक्षम है, इसलिए सरकार ने इस देश में इस उद्देश्य के लिए प्रतियां वितरित नहीं करने का फैसला किया है” (एच.एच.रिस्ले से ग्रियर्सन ,25/1/1904, S/1/2/1)। भारत में हुआ यह विशाल भाषाई सर्वेक्षण, आम भारतीयों के लिए न होकर औपनिवेशिक राज्य के कार्यकर्ताओं तथा इंग्लैंड, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के विद्वानों के लिए था। क्या वास्तव में देशवासी खुद की बातों को सुनना व जानना चाहते है?
आइए सुने, बृजलाल रावत का छत्तीसगढ़ी में गाया गीत – “सीका में टांगे”
हरे, सीका में टांगे छबेला दुई घीव
रसिया संगी रस-लेथय दोस
बिहाता लेथय जीव जवांरा
हरे रंगरेली रे
संझा के पानी, मझनिया के घाम
जिंवरा ला संगी तरसाए दोस
पीपर कस पान जवांरा
हरे रंगरेली रे
नई दिखे रुख-राई, नई दिखय गाँव
नई दिखय संगी रे लेवईया दोस
काकर संग जांव जवांरा
लिए जा रंगरेली रे
पनही ला पहिरे, असल गोखिरे
खोर किन्जरत संगी चले आबे दोस
चोंगी के ओखी रे जवांरा
लिए जा रंगरेली रे
भाषा परिवार : इंडो-आर्यन मीडिएट समूह
भाषा : छत्तीसगढ़ी
रिकार्डिंग नंबर : 5474AK
आवाज : बृजलाल रावत
जिला : रायपुर
क्षेत्र : सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार
वर्ष : 1917
लिंक : http://dsal.uchicago.edu/lsi/5474AK
MP3 : http://dsal.uchicago.edu/reference/lsi/audio/5474ak.mp3
आइए अब सुने, रामानंद तिवारी की आवाज में पढ़ी गई छत्तीसगढ़ी में दृष्टान्त – उड़ाऊ पुत्र (Parable of the prodigal son)
एक मनखे के दु झन बेटा रहिन। वोमा के छोटे हर अपन ददा ला कहिस “ददा, मोर बांटा में जतेक आथे वोतेक मोला देदे”। ओहर अपन जहिजात ला दुनो झन ला बांट दिस। थोरके दिन पिछु छोटे बेटा हर अपन हिस्सा के सबो ला सकेल के दुरिहा देश में जात्रा करेबर निकलिस अउ ओहर उंहा अपन सबो धन ला मजा करके फूंक डारिस। जब अपन सफा पइसा ला खरचा कर डारिस, वो देश में बहुत जबर दुकाल परिस। अउ वोला पइसा के अटकाव परे लागिस। वोहर वो देश के रहवईया मन में के एक झन संग जा के मिलगे। वोहर वोला अपन खेत में सुरा चराय बर पठोईस। वोहर सुरा खाये के भुसा में बड़ खुशी से अपन पेट भर लेतिस। वोहू घला वोला कोनों नई देईस। जब ओकर चेत चरहिस, तब कहिस, मोर ददा के कतको बनिहार नौकर मन अपन पेटभर अन्न खाथय अउ घलुक उपरहा बांच जाथे, अउ मैं भूखन मरथव। मय उठिहव और मोर ददा मेर जहाव, अउ वोला कइहव, ददा! मैं हर भगवान मेर पाप कर डारेव अउ तोरो मेर। तोर बेटा कहवाए लइक मैं अब नई रहेव। तैं मोला अपन एक बनिहार-नौकर सही राख ले। उहां ले उठके वोहर अपन ददा मेर गइस। जब वोहर गजब दुरिहा रहिस, वोकर ददा हर ओला देख लेइस, अउ वोला दया आगे, अउ दौड़ के वोकर गर ला पोटार के चुमा लेइस। तब वोहर अपन बाप ला कहिस, ददा! मय भगवान मेर पाप कर डारेव अउ तोरो नजर में पापी हवव। तोर बेटा कहवाए लइक मैं अब नई रहेव। बाप हर अपन नौकर मन ला कहिस, सब ले अच्छा कपड़ा लान के एला पहिराव अउ वोकर हाथ में मुंदरी अउ पांव मा पनही पहिराव, अउ सबो झन खाबो पीबो, अउ आनंद करबो काबर ले मोर बेटा हर मरे बराबर रहिस, अउ अब जिगे, गंवा गे रहिस, अउ अब मिल गिस। अउ सबो झन आनंद मनाईन। अब वोकर बड़े भाई जउन हर खेत में रहिस, जब घर तीर में पहुंचिस, बाजा अउ नाचत गावत सुनिस, अउ वोहर अपन नौकर मन ला बलाइस, अउ पुछिस, ए सब काय होत हावय, अउ वोहर वोला कहिस, तोर भाई आए हवे, तउनपायके बने बने पहुँच गे, तोर ददा हर नेवता करे हावय। बड़े भाई ला रिस लागिस, अउ वोहर घर भीतरी नई गिस। तब वोकर बाप हर बाहिर निकलिस, अउ वोकर बिनती करके मनाइस।
भाषा परिवार : इंडो-आर्यन मीडिएट समूह
भाषा : छत्तीसगढ़ी
रिकार्डिंग नंबर : 5473AK
आवाज : रामानंद तिवारी, बी.ए., एल.एल.बी.
जिला : रायपुर
क्षेत्र : सेंट्रल प्रोविंस एंड बरार
वर्ष : 1917
लिंक : http://dsal.uchicago.edu/lsi/5473AK
MP3 : http://dsal.uchicago.edu/reference/lsi/audio/5473ak.mp3
“उड़ाऊ पुत्र” दृष्टान्त को आप छत्तीसगढ़ के निम्नलिखित अन्य बोलियों में भी सुन सकते हैं…
बस्तर जिले के हरि गड़बा (Hari Gadabā) की आवाज में गड़बा ( Gadabā) बोली में कथा –
बस्तर जिले के भीम परजा (Bhima Parjā) की आवाज में परजा (Parjā) बोली में –
बस्तर जिले के केसरी गोंड (Kesrī Gond) की आवाज में गोंडी (Gōnḍī) बोली में –
बस्तर जिले के गुरन सिंह हलबा (Guran Singh Halaba) की आवाज में हल्बी (Halabī) बोली में –
बस्तर जिले के काना माड़िया (Kānā Māṛia) की आवाज में माड़िया (Māṛia) बोली में –
सरगुजा जिले के जुठन कोड़ाकु (Jūthan Koḍākū) की आवाज में कोड़ाकु (Kōḍākū) बोली में –
सरगुजा जिले के नाथु कोरवा (Nathu Kōrwā) की आवाज में कोरवा (Kōrwā) बोली में –
छत्तीसगढ़ के बोलियों में उपलब्ध अन्य रिकार्डिंग…
सरगुजा जिले के जुठन कोड़ाकु (Jūthan Koḍākū) की आवाज में कोड़ाकु (Kōḍākū) बोली में कथा “फूलों के राजा कि बेटी” –
सरगुजा जिले के नाथु कोरवा (Nathu Kōrwā) की आवाज में कोरवा (Kōrwā) बोली में गीत “नादर ददा और नालंग ददा” –
सरगुजा जिले के नाथु कोरवा (Nathu Kōrwā) की आवाज में कोरवा (Kōrwā) बोली में कथा “बदला में घरवाली” –
बस्तर जिले के धनो गड़बा (Dhano Gadabā) की आवाज में गड़बा ( Gadabā) बोली में कथा “प्रियतम” –
बस्तर जिले के भीम परजा (Bhima Parjā) की आवाज में परजा (Parjā) बोली में कथा “घरजमाई” –
बस्तर जिले के कन्हाई गोंड (Kanhai Gond) की आवाज में गोंडी (Gōnḍī) बोली में कथा “लोफर की शादी” –
बस्तर जिले के काना माड़िया (Kānā Māṛia) की आवाज में माड़िया (Māṛia) बोली में कथा “लोफर की शादी” –
बस्तर जिले के गुरन सिंह हलबा (Guran Singh Halaba) की आवाज में हल्बी (Halabī) बोली में कथा “बया का शिकार” –
(प्रस्तुत जानकारी शिकागो यूनिवर्सिटी की डिजीटल साउथ एशिया लाइब्रेरी की वेबसाइट से http://dsal.uchicago.edu/lsi/ से साभार)
गीत अउ कथा सुनके कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …
संगी मन के गोठ …