बटकी में बासी अउ चुटकी में नून, एक पईसा के भाजी ला दू पईसा बेचे गोई, गुलगुल भजिया खा-ले, गजब दिन भईगे राजा तोर संग मा नई देखेंव खल्लारी मेला, मन के मन मोहनी मोर दिल के तैं जोगनी, जैसे अनेक गीतों के मशहूर गायक श्री शेख हुसैन जी आज 9 जून 2012 को हमारे बीच नहीं रहे, अल्लाह से दुआ है उनकी रूह को जन्नत नसीब करे…
रायपुर में सन् 1944 को पिता शेख मोहम्मद और अम्मी झुलपा बी के यहाँ शेख हुसैन जी का जन्म हुआ था। प्रायमरी स्कूल डबरी से उन्होंने चौथी कक्षा तक की पढ़ाई की। उन्हें बचपन से ही गाने का शौक था, और वो मटका बजा बजा कर गाते थे। शेख हुसैन जी संगम आर्केस्ट्रा के प्रमुख गायक थे। आर्केस्ट्रा में निर्मला इंगले, मदन चौहान, हुकुमचंद शर्मा आदि उनके साथी कलाकार थे
शेख हुसैन एक जिंदादिल इंसान थे। विषम परिस्थितियों, विसंगतियों से भरी जिंदगी जीते हुए भी शेख हुसैन जी के चेहरे पे निश्चल मुस्कान को देखना सहज ही मन मोह लेता था।
मन के कलप-ना ला नई खोले, तोला कोन बन मा खोजंव मोर मैना-मंजूर… अलविदा शेख हुसैन जी… श्रद्धांजली…
आओ सुनथन श्री शेख हुसैन जी के गाए गीत …
चितावर में वो चिरई बोले
चितावर में वो चिरई बोले
मन के कलप-ना ला नई खोले
तोला कोन बन मा
तोला कोन बन मा खोजेंव मोर मैना-मंजूर
जोड़ी मोला, जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस्त
जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस्त
तोर घर गियेंव मैं कूटत रहे धान
मोर जिंवरा तरसगे पीपर कस पान
तोर घर गियेंव मैं कूटत रहे धान
मोर जिंवरा तरसगे पीपर कस पान
चितावर में वो चिरई बोले
मन के कलप-ना ला नई खोले
तोला कोन बन मा
तोला कोन बन मा खोजेंव मोर मैना-मंजूर
जोड़ी मोला, जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस्त
जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस्त
पानी बिगर-गे जलसों के मारे वो
तोर चेहरा बिगर-गे सनसों के मारे वो
पानी बिगर-गे जलसों के मारे वो
तोर चेहरा बिगर-गे सनसों के मारे वो
चितावर में वो चिरई बोले
मन के कलप-ना ला नई खोले
तोला कोन बन मा
तोला कोन बन मा खोजेंव मोर मैना-मंजूर
जोड़ी मोला, जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस्त
जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस्त
गायन शैली : ददरिया
गीतकार : ?
रचना के वर्ष : ?
संगीतकार : ?
गायन : शेख हुसैन
एल्बम : ?
संस्था/लोककला मंच : संगम आर्केस्ट्रा
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
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