पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म कहि देबे संदेस के निर्माता-निर्देशक श्री मनु नायक जी से आप तक पहुँचाने के लिए फिल्म के गानों का ऑडियो और फोटोग्राफ प्राप्त हुआ है।
‘कहि देबे संदेस’ के गीत ‘दुनिया के मन आघू बढ़गे’ की पोस्टिंग पहले कि जा चुकी है इसलिए उसे पुनः प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं।
आज लाए है आपके लिए ‘कहि देबे संदेस’ फिल्म का अंतिम गीत…
कहि देबे संदेस
इस तरह मुबारक बेगम की जगह ली सुमन कल्याणपुर ने
पहले लता मंगेशकर फिर शमशाद बेगम और मुबारक बेगम से होते हुए ‘कहि देबे संदेस’ का विदाई गीत ‘मोर अंगना के सोन चिरैया वो नोनी’ अंततः आया सुमन कल्याणपुर के हिस्से में। इसका खुलासा भी बड़ा रोचक है। निर्माता-निर्देशक मनु नायक इस बारे में बताते हैं कि – “इस विदाई गीत के लिए हमारे सामने पहली पसंद तो लता दीदी थीं लेकिन उनकी डेट तत्काल नहीं मिल रही थी फिर उनकी फीस को लेकर भी हमारे लिए थोड़ी उलझन थी। अंततः हम लोगों ने शमशाद बेगम से इस गीत को गवाना चाहा। खोजबीन करने पर पता चला कि शमशाद बेगम अब गाना बिल्कुल कम कर चुकीं हैं। ऐसे में हम लोगों ने मुबारक बेगम को इस गीत के लिए एचएमवी से अनुबंधित कर लिया। मुबारक बेगम स्टूडियो पहुंची और रिहर्सल भी की। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था। उनकी आवाज में यह गाना जम भी रहा था। लेकिन दिक्कत आ रही थी महज एक शब्द के उच्चारण को लेकर। गीत में जहां ‘राते अंजोरिया’ शब्द है उसे वह रिहर्सल में ठीक उच्चारित करती थीं लेकिन पता नहीं क्यों जैसे ही रिकार्डिंग शुरू करते थे वह ‘राते अंझुरिया’ कह देती थीं। इसमें हमारी पूरी-पूरी एक शिफ्ट का नुकसान हो गया। उस रोज पूरे छह घंटे में मुबारक बेगम से ‘अंजोरिया’ नहीं हुआ वह ‘अंझुरिया’ ही रहा। अंतत: हमनें अनुबंध की शर्त के मुताबिक उनका और सारे साजिंदों व तकनीशियनों का भुगतान किया और अगले ही दिन सुमन कल्याणपुर को अनुबंधित कर उनकी आवाज में यह विदाई गीत रिकार्ड करवाया। चूंकि हम एचएमवी से पहले ही अनुबंध कर चुके थे, ऐसे में गीत न गवाने के बावजूद मुबारक बेगम का नाम टाइटिल में हमें देना पड़ा।”
सुमन कल्याणपुर का जन्म 28 जनवरी 1937 को ढाका में हुआ था, जहाँ पर वो 1943 तक रहीं। गायिका सुमन कल्याणपुर की कहानी भी कम उल्लेखनीय है। लता और आशा की चमक के आगे दूसरी सभी गायिकाओं की चमक फीकी पड़ जाया करती थी। उस समय के सभी कम चर्चित पार्श्वगायिकाओं में सुमन कल्याणपुर ही थीं जिन्होंने सब से ज़्यादा गीत गाये और सब से ज़्यादा लोकप्रियता भी पायी। उनकी आवाज़ लता जी की तरह होने की वजह से जहाँ उन्हें कई अवसर मिले पर साथ ही वो उनके लिए रुकावट भी सिद्ध हुई। सुमन जी के ससुराल वालों ने भी उन्हें जनता के समक्ष आने का ज्यादा मौका नहीं दिया और वो गायन छोड़ने को मजबूर होकर गुमनामी में चली गयीं।
रूपहले परदे पर भिलाई को दिखाने की ऐसी मेहनत
‘कहि देबे संदेस’ में मन्ना डे की आवाज में जनगीत ‘दुनिया के मन आघू बढ़गे’ में स्वतंत्र भारत के पहले औद्योगिक तीर्थ भिलाई पर गीतकार डॉ.एस.हनुमंत नायडू राजदीप ने ‘भिलाई तुंहर काशी हे ऐला जांगर के गंगाजल दौ, ऐ भारत के नवा सुरूज हे इन ला जुर मिल के बल दौ, तुंहर पसीना गिरै फाग मा नवा फूल मुस्काए रे’ जैसी सार्थक पंक्ति लिखी है। फिल्म में इस गीत के दौरान जहां यह पंक्तियां आती है ठीक वहीं भिलाई के दृश्य आते हैं। इसकी शूटिंग की भी बड़ी रोचक दास्तां है। निर्माता-निर्देशक मनु नायक इस बारे में बताते हैं – “सीमित खर्च में फिल्म पूरी करना एक चुनौती थी और वह दौर बेहद कठिन था। पाकिस्तान के साथ युद्ध की वजह से आपातकाल लगा हुआ था। एक तो कच्ची फिल्म की विदेश से आपूर्ति नहीं हो रही थी दूसरा भिलाई इस्पात संयंत्र को सुरक्षा के लिहाज से संवेदनशील मानते हुए इसके आस-पास फोटोग्राफी या शूटिंग पर उन दिनों भारत सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था। मेरे लिए मुश्किल थी कि फिल्म डिवीजन से संपर्क नहीं हो पाया था। फिर जो कच्ची फिल्म उपलब्ध थी उसी में मुझे शूटिंग हर हाल में करनी थी। इसलिए प्रतिबंध के दौर में मैंने एक मूवी कैमरा उस वक्त की एक बड़ी वैन में रखा और पहुंच गया आज के बीएसपी के मेनगेट के पास। तब प्लांट की बाउंड्री, मेनगेट और सेक्टर-3 का निर्माण नहीं हुआ था और चारों तरफ दूर-दूर तक मशीनों और मैदान के सिवा कुछ नजर नहीं आता था। मैंने वैन में परदा डाल कर चोरी छिपे भिलाई के शॉट्स लिए। फिल्म रिलीज होने के बाद कई लोगों ने मुझसे इस दृश्य के बारे में पूछा लेकिन हंस कर टालने के सिवा मेरे पास कोई चारा नहीं था।”
नहीं बन पाई ‘पठौनी’
छत्तीसगढ़ी में पहली फिल्म बनाने वाले निर्माता-निर्देशक मनु नायक ने बाद में दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘पठौनी’ की भी घोषणा की थी। लेकिन, 40 साल में उनकी यह फिल्म नहीं बन पाई। आज भी मनु नायक अपनी इस फिल्म को लेकर बेहद उत्साहित हैं। वो कहते हैं – आज भी अगर सही फाइनेंसर मिल जाए तो वह अपना ‘पठौनी’ प्रोजेक्ट हर हाल में पूरा करना चाहते हैं। मनु नायक बताते हैं – मेरी ‘पठौनी’ नारी शक्ति जागरण पर केंद्रित है। उसके लिए मैंनें अपने संगीतकार मलय चक्रवर्ती और गीतकार – डा.एस.हनुमंत नायडू के साथ रायपुर में संगीत पक्ष की तैयारी की थी और यहां से मिथिलेश साहू व पुष्पलता कौशिक को मुंबई ले जाकर गीत रिकार्ड करवाए थे। ‘पठौनी’ का प्रोजेक्ट उसी दौरान पूरा करना था लेकिन ‘कहि देबे संदेश’ का कर्जा छूटते-छूटते मुझे कई साल लग गए। फिल्म को लेकर उठे विवाद के दौरान भागदौड़ में मेरा ज्यादा समय खराब हुआ। जिससे मेरा कैरियर भी चौपट हो गया। फिर मैनें नए सिरे से ‘पठौनी’ प्रोजेक्ट शुरू किया। लेकिन तब तक दूसरी और जवाबदारियां भी सामनें थीं। ऐसे में यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया। अब मेरी दिली ख्वाहिश अपने ‘पठौनी’ प्रोजेक्ट को पूरा करने की है।
श्री मनु नायक से निम्न पते पर संपर्क किया जा सकता है-
पता : 4बी/2, फ्लैट-34, वर्सोवा व्यू को-आपरेटिव सोसायटी, 4 बंगला-अंधेरी, मुंबई-53
मोबाइल : 098701-07222
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प्रस्तुत आलेख लिखा है श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी ने। भिलाई नगर निवासी, जाकिर जी पेशे से पत्रकार हैं। प्रथम श्रेणी से बीजेएमसी करने के पश्चात फरवरी 1997 में दैनिक भास्कर से पत्रकरिता की शुरुवात की। दैनिक जागरण, दैनिक हरिभूमि, दैनिक छत्तीसगढ़ में विभिन्न पदों पर अपनी सेवाएं देने के बाद आजकल पुनः दैनिक भास्कर (भिलाई) में पत्रकार हैं। “रामेश्वरम राष्ट्रीय हिंदी पत्रकारिता” का प्रथम सम्मान श्री मोहम्मद जाकिर हुसैन जी को झांसी में दिसंबर 2004 में वरिष्ठ पत्रकार श्री अच्युतानंद मिश्र के हाथों दिया गया।
मोहम्मद जाकिर हुसैन
(पत्रकार)
पता : क्वार्टर नं.6 बी, स्ट्रीट-20, सेक्टर-7, भिलाई नगर, जिला-दुर्ग (छत्तीसगढ़)
मोबाइल : 9425558442
ईमेल : mzhbhilai@yahoo.co.in
पेश है आज का गीत …
हो~ओ~ओओ
हो~ओ~ओओ
हो~ओओ
हो~ओओ
हो~ओओ होओ~
मोरे अंगना के सोन चिरईया नोनी~
अंगना के सोन चिरईया नोनी~
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
तैं तो चली देबे पर के दुवार
हो~ओ~ओ होओ
हो~ओ~ओ~ओ~ओ~ओ
हो~ओ~ओ होओ
हो~ओ~ओ~ओ~ओ~ओ
अंगना मा तुलसी के, बिरवा लगाए ओ ओओ~ओ
चंदा के उगते मा, दिया ला जलाए ओ ओओ~ओ
बांधी लैबे अचरा मा, बांधी लैबे अचरा म
बांधी लैबे अचरा मा, राते अंजोरिया~ हो~ओओ~हो
जोरी लैबे सोनहा भिनसार
तैं तो छोड़ी देबे दाई के दुवार
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
टिमकत चंदैनी के, बेनी गथाए ओ ओओ~ओ
बादर के काजर मा, आंखी रचाए ओ ओओ~ओ
लहरा के लुगरा ले, लहरा के लुगरा ले
लहरा के लुगरा ले, भंवरी के ककनी हो~ओओ~हो
टिकी डारे चंदा कपार
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
तैं तो चली देबे पर के दुवार
हो~ओ~ओ होओ
हो~ओ~ओ~ओ~ओ~ओ
हो~ओ~ओ होओ
हो~ओ~ओ~ओ~ओ~ओ
तिरिया के चोला ला, कोन्हो झन पाए ओ ओओ~ओ
तन ले करेजा ला, कईसे बिलगाए ओ ओओ~ओ
भईया हा रोवय तो, भईया हा रोवय तो
भईया हा रोवय तो, रोवय जंहूरिया हो~ओओ~हो
दीदी के तलफे दुलार
तैं तो चली देबे पर के दुवार
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
मोरे अंगना के सोन चिरईया नोनी~
तैं तो उड़ी जाबे पर के दुवार
तैं तो चली देबे पर के दुवार
गीतकार : डॉ.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’
संगीतकार : मलय चक्रवर्ती
स्वर : सुमन कल्याणपुर
फिल्म : कहि देबे संदेस
निर्माता-निर्देशक : मनु नायक
फिल्म रिलीज : 1965
संस्था : चित्र संसार
‘कहि देबे संदेस’ फिल्म के अन्य गीत
झमकत नदिया बहिनी लागे … Jhamkat Nadiya Bahini Lage
बिहनिया के उगत सुरूज देवता … Bihaniya Ke Ugat Suruj Devta
तोर पैरी के झनर-झनर … Tor Pairi Ke Jhanar Jhanar
होरे होरे होरे … Hore Hore Hore
तरि नारी नाहना … Tari Nari Nahna
दुनिया के मन आघू बढ़गे … Duniya Ke Man Aaghu Badhge
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
अंत में प्रस्तुत है – ‘कहि देबे संदेश’ में नायक के दोस्त की भूमिका निभाने वाले डॉ.कपिल कुमार से श्रीमती शकुंतला तरार की मुलाकात का संस्मरण…
संजोग कभू कभू मनखे के हिरदे मा अइसन सुरता भर देथे कि वो सुरता ला करते-करत मन मा उछाह भर जाथे। बिंसवास करत नई बनय कि अभिनेच के बात आय कि कई दिन, कई महीना, कई बछर होगे भेंटघाट करे। अइसने एक ठी संजोग बनिस मोर संग जब मोर संगवारी रेखा “रोशनी” ह मोला चेतन फ्रेमवाला के घर मा आयोजित सर्वभाषी कवि गोष्ठी मा लेगिस। हिन्दी पखवाड़ा के ए गोष्ठी मा मोर परिचे कराये गिस कि मयं हर छत्तीसगढ़ राज के राजधानी रायपुर ले आये हववं। जइसने मयं अपन रचना के पाठ छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी मा सुनाके मंच ले उतरेंव इक झिन सियान मनखे तुरते ताही लपक के मोर करा आईस अउ अपन परिचे देय लगिस। बातचीत के सिलसिला आघू बढ़िस वो कहिन शकुंतला जी मोर नाव डॉ.कपिल कुमार ए। मयं हर ऊंखर व्यक्तित्व ला देखेंव बहुत प्रभावशाली सिरतोन मा जवानी मा बहुतेच सुंदर रहे होहीं तभे तो सिनेमा मा हीरो बनके आये रिहिने।
वो कहिन शकुंतला जी छत्तीसगढ़ के नाव ला सुनके जुन्ना पुराना सुरता हर मोर मन मा जागिस हवे। मयं छत्तीसगढ़ी के पहिली फिलिम ‘कहि देबे संदेश’ में दूसर हीरो के रूप मा काम करे रहेंव। वो समे एक महीना ले मयं रायपुर मा रिहेवं अउ हमन रात दिन लगातार शूटिंग करके फिलिम तइय्यार करेन। रायपुर बहुत भाये रिहिसे मोला। उहाँ के मनखे बड़ सरल सुभाव के। उहाँ के दार भात के सुवाद लातो आजतक ले मयं नई भुला सकवं। अउ मनु नायक ला घलो नई बिसराववं। कहत ऊंखर आंखी मा सुरता के चमक आगे रिहिसे, आज भी वो सुरता ऊंखर अंतस मा मया के झरना बनके बोहावत हे। आगे वो हर बताईन तेमा ऊंखर व्यक्तित्व के झलक हमला मिलथे कि वो एक अच्छा अभिनेता के संगे संग एक अच्छा गीतकार घलो आयं। निर्माता-निर्देशक बासु भट्टाचार्य के फिलिम आविष्कार में राजेश खन्ना के ऊपर मिल्माये गीत “हंसने की चाह ने कितना मुझे रुलाया है, कोई हमदर्द नहीं दर्द मेरा साया है” अमर गीत के श्रेणी मा है अउ वो गीत ला डॉ.कपिल कुमार लिखे रिहिने।
वो दिन के सर्वभाषी कवि गोष्ठी मोर बर यादगार बनगे जिहां मयं छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के मयारुक संग मा भेंट करके आयेवं। आज घलो हमर बीच फोन मा बातचीत होथे। पत्र व्यवहार चलथे अउ वो मोर पतरिका “नारी का संबल” के नियमित लेखक अउ पाठक बन गये हें।
शकुंतला तरार
आइए सुनते है शकुंतला जी की कुछ रचनाएं…
1956 में कोण्डागांव (बस्तर) में जन्मी श्रीमती शकुंतला तरार एक वरिष्ठ कवयित्री और स्वतंत्र पत्रकार हैं। एल.एल.बी. और बी.जे. करके खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय में लोक संगीत की छात्रा रह चुकी हैं। बचपन से शकुंतला जी एक ऐसे माहौल में पली हैं जहाँ बस्तरिया लोग गीत और लोक कथा जिन्दगी के अंश रहे हैं। शकुंतला तरार जी छत्तीसगढ़ी, हिन्दी और हल्बी में लिखती हैं। आकाशवाणी जगदलपुर से उनकी कविताएँ प्रसारित होती हैं। शकुंतला जी हल्बी की उद्घोषिका भी रही हैं। उनका छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह ‘बन कैना’ बहुत ही लोकप्रिय है। “बस्तर का क्रांतिवीर – गुण्डाधुर”, “बस्तर की लोककथायें” आदि कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकीं हैं। हल्बी भाषा में इनकी हाइकू रचनाओं का एक संग्रह भी प्रकाशित है। बस्तर के लोकगीत, लोक कथा, बाल गीत पर शकुंतला जी काम कर रही हैं।
शकुंतला तरार
पता : सेक्टर 2, प्लॉट नं.32, एकता नगर, गुढ़ियारी, रायपुर (छत्तीसगढ़)
मोबाईल : 9425525681
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …;
संगी मन के गोठ …