आज अक्षय तृतीया हे, आज के दिन से सादी-बियाह के सुरुवात होथे। घर के सियान मन अपन नोनी-बाबू के लगन के काम करथे। छोटे छोटे लइका मन घलो पूरा बिधि-बिधान ले अपन पुतरा-पुतरी के बिहाव रचाथे। अइसन करत करत लइका मन सामाजिक कार्य-ब्यवहार ल खुदे ले सिखत रीथे। कई जगा म घर-परिवार के संगे-संग पूरा के पूरा गांव ह लइका मन के रचे बिहाव के कार्यक्रम म सामिल होथे। तेकर सेती कहे जाथे कि अक्षय तृतीया ह सामाजिक अउ सांस्कृतिक सिक्षा के तिहार ऐ।
फोटो साभार – राहुल गाय्वाला
बिहाव
बिहाव ह हमर परमुख संस्कार हे। जतका महत्म ये संस्कार के आदमी के जीवन म हे ओतका अउ कोनों संस्कार के नई हे। इहि बात ए कि ये संस्कार ह दुनिया के हर कोती पाय जाथे। विभिन्न परदेस अउ जाति म बिहाव के आने-आने परथा हे। छत्तीसगढ़ के भी अपन अलग बिहाव के रीत हे। आर्य अउ अनार्य दुनों के मिले-जुले बिहाव परथा ह ये अंचल म देखे जा सकथे। तीन दिन म पूरा होवइया बिहाव ल “तीनतेलिया” अउ पांच दिन म पूरा होवइया बिहाव ल “पांचतेलिया” कहे जाथे। एमा कोनों परकार के अंतर नई होवय। असल म एला गरीब अउ अमीर मन के अपन अपन रीत की सक-थन । संभवतः गरीब मन बिहाव ल जल्दी निपटाय बर “तीनतेलिया” के अउ धनवान मन बिसतार करके “पांचतेलिया” के प्रचलन करिस होही। अउ पीढ़ी दर पीढ़ी इहि रूप म मनावत गिस। का गरीब का अमीर सबो-झन “तीनतेलिया” ल अपनाए के बाद आजकल तो दू दिन के “दूतेलिया” बिहाव के रीत सुरु हो गे हे।
बिहाव के गीत दू रूप म दिखथे। जहां वर पक्ष कोती के गाए जाय वाला गीत म उत्साह अउ हर्ष रीथे, उंहे कन्या पक्ष कोती के गाए जाय वाला गीत म विषाद के भाव जादा रीथे। कन्या ल जहां अपन मायके छोड़े के दुःख रीथे, उंहे माँ-बाप ल अपन दुलारी से बिछोह के दरद होथे। बिहाव के अवसर म कई परकार के बिधि-बिधान म गाए जाय वाला गीत म चुलमाटी, तेलचघी, मायमौरी, नहडोरी (बरात प्रस्थान), परघनी (बरात स्वागत), भड़उनी व गारी, टिकावन, भांवर, बिदा, पठौनी या गौना के गीत परमुख हे।
आज ले बिहाव के अवसर म गाये जाय वाला गीत ल एक-एक करके आप-मन ल सुनाबो, आज बारी हे चुलमाटी गीत के
चुलमाटी
चुलमाटी ले बिहाव के सुरुवात माने जाथे। ढेड़हिन/सुवासिन (जेमां वर के भउजी, बहिनी अउ फूफू सामिल रीथे) बिहाव के चूल्हा खातिर माटी लाय-बर देवस्थल या जलासय के किनारे म जाथे। उंहा ढेडहा (जीजा, फूफा) अउ ढेड़ही (बहिनी, फूफू) के ही काम रीथे। इंहा “साबर” (सब्बल) ले माटी कोड़े जाथे। माटी कोड़त समय सुवासिन मन एक संग गीत गा उठथे। गीत गात माटी कोड़ ले जाथे। तहान गीत गात गात सुवासिन मन घर आथे। चुलमाटी के गीत म बियंग के स्वर ह परमुख होथे।
तोला साबर धरे ला, तोला साबर धरे ला
तोला साबर धरे ला, नई आवय मित धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
तोला पर्रा बोहे ला, तोला पर्रा बोहे ला
(पुरुष – सुनत हस सुवासिन)
(स्त्री – सुनत हावव~)
तोला पर्रा बोहे ला, नई आवय मित धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन भाई ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन भाई ल तीर धीरे धीरे
तोला माटी कोड़े ला, तोला माटी कोड़े ला
(स्त्री – सुनत हस सुवासन)
(पुरुष – अरे ददा रे~)
तोला माटी कोड़े ला, नई आवय मित धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
तोला माटी झोंके ला, तोला माटी झोंके ला
तोला माटी झोंके ला, नई आवय मित धीरे धीरे
धीरे धीरे तैं कछोरा ला ढील धीरे धीरे
धीरे धीरे तैं कछोरा ला ढील धीरे धीरे
तोला धोती पहिरे ला,तोला धोती पहिरे ला
(स्त्री – बने सम्हाल के पहिरबे)
(पुरुष – छुटत हे)
तोला धोती पहिरे ला,नई आवय मित धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन टोलगी खोंच धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन टोलगी खोंच धीरे धीरे
तोला लुगरा पहिरे ला,तोला लुगरा पहिरे ला
(पुरुष – अरे बने सम्हाल के पहिन ले सुवासिन)
(स्त्री – कईसे मोला पहिरे ल नई आही का)
(पुरुष – अरे लुगरा के छोर ह घिसलत हे)
(स्त्री – अरे एमा तोला का जलन जात हे)
तोला लुगरा पहिरे ला, नई आवय मित धीरे धीरे
धीरे धीरे तैं कछोरा ल भींच धीरे धीरे
धीरे धीरे तैं कछोरा ल भींच धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन भाई ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन भाई ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन बहिनी ल तीर धीरे धीरे
धीरे धीरे अपन भाई ल तीर धीरे धीरे
गायन शैली : ?
गीतकार : ?
रचना के वर्ष : ?
संगीतकार : ?
गायन : रेखा देवार व साथी
संस्था/लोककला मंच : ?
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …
Harihar Vaishnav
मई 06, 2011 @ 17:46:41
Bhaaii Rajesh Chandrakar jii
Lok sanskriti ke apsanskritikaran ko le kar aapakii chintaa waazib hai.
Aap apane is blog ke maadhyam se jo kaam kar rahe hain usake liye aap kotishah badhaaii ke paatra hain. Chhattisgarh kii lok sanskriti aur kalaa ko sahejane aur prakash mein laane ke aapke is mahatwapuurna prayaas ko mera pranaam. Aaj se aapane bihaaw giiton ke prastutikaran kaa silsila aarambha kiyaa hai wah to aur bhii swaagat yogya hai. Udhar bhaaii shri Rahul Singh jii aur bhaaii Sanjeev Tiwari jii bhii hamein laabhaanwit kar rahe hain. Aap logon kaa pryaas stutya hai. Aabhaar aap sab kaa.
Ek anurodh: aapne is geet ke parichay mein ”bhaabhii” aur ”buaa” shabdon kaa prayog kiyaa hai, kyaa inakii jagah teth chhattisgarhi shabdon ”bhaujii” aur ”phuphu” athawaa ”phuaa” kaa prayog adhik samiichiin nahin hota.
cgsongs
मई 06, 2011 @ 20:12:47
अद्यतन
राहुल सिंह
मई 06, 2011 @ 21:59:51
बढि़या गीत. बिहाव गीत के दू ठन छपे किताब देखे बर मिले है, एक गंडई वाला पीसीलाल यादव जी के अउ दूसर अकलतरा के श्रीमती गोमती चंदेल जी के.
Dhannuछत्तीसगढ़िया
मई 08, 2011 @ 12:55:22
वाह
बिहाव के सिजन मा ये गीत ला सुन मन झुमर गे।
मन तो करत हे बस गाढा बाजा मा कुद2 के नांचव।
धन्यवाद
mahendra patel
मई 09, 2011 @ 13:42:15
apan sanskriti se koun la pyar nahi rahe sangvari har koi chaetey ki apan sanskriti ke god ma samay bitaye par sab jan y nasib nahi hoye ye geeth la sun ke chatisgarh ke wo bini mati ke khusboo se mann taja ho gey
sudarshan singh
मई 15, 2011 @ 11:39:41
bar bihav ke din ma sughar bihav geet sangi bada nik lagis
kishor agrawal
जून 19, 2011 @ 23:54:39
mai har bahut pahili aisan sochaon ke chhattisgarhi ke gaon man ke riti rivaj ke ek than jagah hona chahi. ela aap man ha bane banaev hao. mola abbad pasand aais re bhai. mola chhattisgarhi ma likhe la nai aavay fer kosis kare hanv
सीताराम सेन
अप्रैल 08, 2012 @ 20:57:30
ए अवाज मोला मोर फुफु दीदी अशोमती सेन ग्राम बोरिद के अवाज के सुरता देवा डरिस .आप ल बहुत2 धन्यवाद!
VIKESH DEWANGAN
मई 03, 2012 @ 17:16:04
ADBAD NIK LAGIS SANGI MAJA AAGE
chhaliyaramsahani
जनवरी 29, 2015 @ 17:07:57
Bhadauni chhttishgarhi ke gurtur suwad hare.
Chhaliya Ram Sahani 'ANGRA'
जनवरी 30, 2015 @ 13:39:48
Rekha ke awaj bahut meeth he.
Devendra Ramachandra chitriv
मार्च 28, 2017 @ 17:32:31
Itni sunder awaz Maine ajtak nahi Kat suni wah kismatbai Dewar markam
devendra chitriv
मार्च 28, 2017 @ 17:44:57
Sunder awaz Maine ajtak nahi suni wah kismatbai Dewar markam I apko vandan