एक दिन ले दुय दिन … Ek Din Le Duy Din

हल्बी जनभाषा में गाये जाने वाले ‘तीजा जगार’ का आयोजन ‘अमुस तिहार’1 के बाद आरम्भ हो जाता है, जो भादों महिने के शुक्ल पक्ष तृतीया तक चलता है और चतुर्थी तिथि को सम्पन्न हो जाता है। इस तरह यदि अमुस तिहार के अगले दिन यह आरम्भ होता है तो इसकी अवधि पूरे एक महीने की हो जाती है। कारण, यह ‘तीजा उपास’2 के दिन सम्पन्न होता है और इसका विसर्जन किया जाता है अगले दिन यानी गणेश चतुर्थी को। किन्तु प्रायः जन्माष्टमी से ही यह प्रारम्भ होता है और तीजा तक चलता है। आयोजन की अवधि कम से कम 7 दिन तथा अधिकतम एक महीने हो सकती है। पारबती और बालीगौरा की कथा इसका मुख्य आकर्षण होती है। कुछ गुरुमायें इसके अन्तर्गत सात राजाओं की कथा बताती हैं तो कुछ चार राजाओं की। बस्तर अंचल के हल्बी-भतरी परिवेश के अतिरिक्त काँकेर एवं धमतरी जिलों के छत्तीसगढ़ी परिवेश में भी यह आयोजन इसी समय होता है। यह वस्तुतः बस्तर अंचल का न केवल लोक महाकाव्य है बल्कि लोक महोत्सव भी है। इसमें महाकाव्य के शास्त्र सम्मत सभी तत्व उपस्थित हैं। यह लोक महाकाव्य मौखिक परम्परा का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है, जिसे यहाँ की लोक गायिकाओं ने बड़े ही यत्न पूर्वक जीवित रखा है।

तीजा जगार भादों महीने की शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि को महिलाओं द्वारा रखे जाने वाले व्रत तीजा (हिन्दी परिवेश में ‘हरितालिका’, छत्तीसगढ़ी परिवेश में ‘तीजा’ और हल्बी-भतरी परिवेश में ‘तिजा’) के अवसर पर छत्तीसगढ़ के हल्बी तथा कुछेक स्थानों पर छत्तीसगढ़ी परिवेश में गाया जाता है। हिन्दी और छत्तीसगढ़ी परिवेश में यह व्रत जहाँ कुँआरी कन्याओं द्वारा मनवांछित पति की कामना या विवाहिताओं द्वारा पति के सुदीर्घ जीवन की कामना से रखा जाता है वहीं हल्बी-भतरी परिवेश में कुँआरी कन्याओं द्वारा पति की कामना, विवाहिताओं द्वारा अपने सुहाग की रक्षा और सन्तान-प्राप्ति की कामना से भी। हिन्दी और छत्तीसगढ़ी परिवेश में यह व्रत पार्वती द्वारा शिव की प्राप्ति हेतु की गयी तपस्या से अनुप्राणित लगता है तो हल्बी-भतरी परिवेश में पूर्णतः सन्तान-प्राप्ति की कामना से किया जाने वाला अनुष्ठान। यह तथ्य इस ‘जगार’ की कथा में स्पष्टतः उभर कर सामने आता है। इस महाकाव्य की सम्पूर्ण कथा से यही ध्वनित होता है कि सन्तान के बिना नारी अपूर्ण है। उसकी सबसे बड़ी और उत्कट अभिलाषा है सन्तान-प्राप्ति। दुनिया में उसे सन्तान-सुख के अतिरिक्त कोई और सुख नहीं चाहिये।

‘तीजा जगार’ के विविध स्वरूप हैं जो अलग-अलग गुरुमायों द्वारा गाये जाते हैं। गुरुमायँ सुकदई द्वारा प्रस्तुत गाथा में बाँजिनरानी, माहापातरिन रानी और जानादई द्वारा सन्तान-प्राप्ति के लिये विविध अनुष्ठान और उद्योग किये जाते हैं। इनमें तुलसी रोपण, कुआँ-बावली और सरोवर का उत्खनन तथा ‘तीजा जगार’ का आयोजन प्रमुख हैं।

भँवरानँगर के सन्तानहीन राजा-रानी अपनी सन्तानहीनता के कारण ही बाँजाराजा और बाँजिनरानी (बाँझ राजा-रानी) कहलाते हैं। राजा तो अपने राज-काज में व्यस्त होने के कारण सन्तानहीनता के दुःख को लगभग भुला देता है, किन्तु नारी-सुलभ स्वभाव-वश रानी इस दुःख को पल-पल भोगती रहती है। सारे यत्न करने के बावजूद वह सन्तान-सुख से वंचित ही रहती है। वह विचार करती है कि जब तक जीवन है तब तक तो घर-द्वार, राज-पाट सब कुछ है किन्तु इन सबके बावजूद कोख सूनी है। ऐसे में मृत्यु के बाद उन्हें कौन याद रखेगा? उसे यही चिन्ता सताती रहती है। एक दिन वह बाँजाराजा से कहती है कि वह ‘धनकुल’ का आयोजन करना चाहती है ताकि उसे सन्तान की प्राप्ति हो और उसकी मृत्यु के बाद भी लोग उसे याद रखें। बाँजाराजा उससे सहमत होता है। तब वह अपने महल में ‘धनकुल’ का आयोजन करती है। इसके बावजूद उसके अभीष्ट की सिद्धि नहीं होती और उसका मन नहीं मानता तब वह अपने महल में तुलसी रोपती है कि सम्भवतः ऐसा करने पर देव उस पर प्रसन्न हों और उसे सन्तान-सुख दें। किन्तु इस उद्योग से भी उसे वांछित फल नहीं मिलता तब प्यासे लोग अपनी प्यास बुझाएँ और उसे आशीर्वाद दें ताकि उनके आशीर्वाद से उसे सन्तान की प्राप्ति हो, इस विचार से वह सरोवर खुदवाती है, फल-फूल के बाग-बगीचे लगवाती है। किन्तु कई यत्न करने के बावजूद सन्तानहीनता का दंश भोगते अपने मन को वह ढाढ़स नहीं बँधा पाती। राजमहल की चहारदीवारी के भीतर रहते-रहते उसका मन क्लान्त हो उठता है तब वह एक दिन राजा की आज्ञा लेकर राज्य की आम महिलाओं के साथ काँदा (कन्द) खोदने के लिये जंगल जाती है। वहीं काँदा खोदते हुए सौभाग्य से उसे जमीन के भीतर एक शिशु प्राप्त होता है। बाँजिनरानी उसी शिशु (डाहाँकरैया) को भगवान का प्रसाद समझ कर अपना पुत्र मान लेती है।

इसी तरह माहापातरिन रानी भी सन्तान-प्राप्ति के लिये सबसे पहले तुलसी रोपती है फिर सरोवर और कुआँ खुदवाती है, पेड़-पौधे रोपती है। इसके बाद उसकी कोख से एक पुत्री (जानादई) का जन्म होता है। बड़ी होने पर जब जानादई का विवाह डाहाँकरैया के साथ होता है तब वह भी सन्तान-प्राप्ति के लिये तुलसी रोपती है, ‘तीजा’ का उपवास रखती है और सरोवर तथा कुआँ खुदवाती है, पेड़-पौधे लगाती है। इतने उद्योग के बाद उसे सन्तान का सुख प्राप्त होता है। वह तब अपने आप को सम्पूर्णता में देख पाती है।

यह महाकाव्य तीन स्पष्ट खण्डों में संयोजित है। पहला खण्ड ‘बाँजिनरानी खण्ड’ है (अध्याय 1 से 7) जिसमें बाँजिनरानी और बाँजाराजा की कथा है। खण्ड 2 ‘माहापातरिन-जानादई खण्ड’ (अध्याय 8 से 19) में माहापातरिन रानी, उसकी बेटी जानादई और बाँजाराजा के बेटे डाहाँकरैया की कथा है जबकि खण्ड 3 ‘बाली गौरा खण्ड’ (अध्याय 20 से 25) में बाली गौरा और पारबती रानी की। प्रथम दो खण्डों में कथा व्याख्यायित और प्रवाहित होती है जबकि अन्तिम खण्ड (खण्ड 3 : ‘बाली गौरा खण्ड’ : अध्याय 20 से 25) में कथा-वस्तु का विकास, चरमोत्कर्ष, निर्गति तथा परिणाम या फलागम सम्मिलित हैं। इस महागाथा का फलागम सुखान्तक होने की बजाय दुखान्तक है।

© सर्वाधिकार सुरक्षित

आलेख, संकलन : श्री हरिहर वैष्णव

हरिहर वैष्णव

 

 

सम्पर्क : सरगीपाल पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़।
दूरभाष : 07786-242693
मोबाईल : 93004 29264, 76971 74308
ईमेल : lakhijag@sancharnet.in, hariharvaishnav@gmail.com

 

 


1 अमुस तिहार : इसे ‘हरेली तिहार’ एवं ‘हरियाली अमावश्या’ के नाम से भी जाना जाता है। श्रावण मास की अमावश्या के दिन यह त्योहार मनाया जाता है।
2 तीजा उपास : भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को महिलाओं द्वारा रखा जाने वाला हरितालिका व्रत।


 

प्रस्तुत है ‘तीजा जगार’ का अंश …

गुरुमाय सुकदई और सोमारी द्वारा प्रस्तुत

बस्तर के नारी-लोक की महागाथा

तिजा (तीजा) जगार

अधया-05 : बाँजिनरानी चो तुलसी-बुटा मँडातो
अध्याय-05 : बांझ रानी द्वारा तुलसी-पौधा-रोपण

एक दिन ले दुय दिन
दुय दिन ले आँट दिन
धनकुल मँडालो होय रानी चो
धनकुल मँडालो होय
धनकुल-सेवा करे रानी
धनकुल-पुजा करे
आँट दिन ले पँदरा दिन
पँदरा दिन ले मयना दिन
धनकुल मँडालो होय रानी चो
धनकुल मँडालो होय
धनकुल-सेवा करे रानी
धनकुल-सेवा करे ||0133||

छय मइना होए रे भगवान
साल-डेड़ साल होये परभू
धनकुल मँडालो होय रानी चो
धनकुल मँडालो होय
धनकुल-सेवा करे रानी
धनकुल-पुजा करे
मने बिचार रानी करे
दिले धोका रानी करे
हे राम भगवान बले रानी
बाप रे दइया बले
नाना पयकार होले बले
मयँ बाना-बिसा होले
काईं नामना निंहाय बले
काईं किरती निंहाय बले
जिव रत ले खायँदे बले
मोचो करले नाव निंआय
एके किरती करले जाले
एक किरती करले जाले
जुग-जुग नाव रएदे बले
मोचो किरती बाड़ुन जायदे
बाजे बसुन जात राजा-रानी
सेज बसुन जात ||0134||

“सुना राजा राजरपती
सुना राजा देसरपती
बाते सुनुन जाहा राजा
गोठ मानुन जाहा
काईं नामना निंहाय राजा
मचो काईं किरती निंहाय
एके किरती करले जाले
एक किरती करले जाले
जुग-जुग नाओ रएदे राजा
किरती बाढ़ुन जायदे”
“काय किरती आय रानी
आले मोके साँग” ||0135||

“सुना राजा राजरपती
सुना राजा देसरपती
तुलसी मँडाउन दिहा राजा
मके तुलसी मँडाउन दिया
तुलसी-सेवा करें राजा
मयँ तुलसी-पुजा करें
काईं बले नाओ रएदे राजा
जुग-जुग नाओ होयदे राजा”
रानी हट मताय राजा के
रानी टेको मताय
दतुन नई चाबे रानी
अन नई खाए
भुके-भुके बले रानी आसे
भुके-भुके रानी आसे
बाँजा राजा दखे बाबा
बाँजा राजा दखे
रानी के काए बले राजा
सुना रानी बले
“तिनपुर टेकहिन आइस रानी
बड़ा उपइन आस रानी
टेक मताउन जास रानी
हट मताउन जास
दतुन नई चाबिस रानी
अन नई खाइस
तिनपुर रोना तुय रोइस रानी
तिनपुर रदना धरिस रानी
तिनपुर हट मतास रानी
तिनपुर टेको मतास
भुक ने मरुन जासे रानी
तुय भुके मरुन जासे ||0136||

“दतुन चाबुन जा रे रानी
अन खाउन जा रे रानी
तुलसी मँडाउन दइँदे रानी
तुके तुलसी मँडाउन दयँदे”
रानी सुनुन जाय बाबा
खँड मुचकी मारे
मुचमुच-मुचमुच रानी हाँसे
मुचमुच-मुचमुच रानी हाँसे
दतुन चाबुन जाय रानी
अन खाउन जाय ||0137||

एक दिन ले दुय दिन
दुय दिन ले आँट दिन
दतुन चाबलो होय रानी चो
अन खादलो होय
बाजे बसुन जात राजा-रानी
सेज बसुन जात
“सुना राजा बाँजा राजा
सुना राजा बाँजा राजा
पँजिआर-माहाले जाहा राजा
पँडित-माहाल जाहा
पँडित बलाउन आना राजा
मके तुलसी मँडाउन दयदे” ||0138||

सुने राजा बाँजा राजा
सुने राजा बाँजा राजा
बाबू के काए बले राजा
“सुन बाबू” बले
“उपरभवने जा बाबू
तुय साहादेव पँडित के आन
आपलो जाको बले धरो बाबू
आपन साजू धरो बाबू
एक डँडिक एवो बाबू
मके तुलसी मँडाउन दयदे
रानी हट मताय बाबू
रानी टेक मताय” ||0139||

सुने बाबू झोलू पाइक
सुने बाबू झोलू पाइक
हरबर तियार होय बाबू
जलदी तियार होय
आपन साजू पिंदे बाबू
आपन जाको धरे
हाते बेद बले बाबू धरे
पाँए खड़ऊ बाबू पिंदे
राजा-माहाल छाँडे बाबू
जाते-जाते जाय
रुमझुम-रुमझुम रेंगे बाबू
एक कोलाट मारे ||0140||

जाए बाबू झोलू पाइक
जाए बाबू झोलू पाइक
मोकोड़ी-माहाले जाय बाबू
मोकोड़ी-माहाल अमरे
माँडो मोंगरा उबे बाबू
बाई हंका मारे
बाई सुनुन जाये बाबा
घर ले बाहिर होय परभू
बाबू के काए बले बाई
“सून बाबू” बले
“काय कामे इलिस बाबू
आले मोके साँग” ||0141||

“सुन बाई पदमकड़ी
सुन बाई पदमकड़ी
सुत लमाउन दे बाई
मके ताग लमाउन दे
उपरभवने जायँ बाई
मयँ उपरभवने जायँ” ||0142||

“सुन बाबू झोलू पाइक
सुन बाबू झोलू पाइक
कइसे सुत लमायँ बाबू
मयँ कइसे तागो लमायँ
बाल-बचा गागोत बाबू
लोलो-बालो गागोत” ||0143||

“तुचो पिला के लाई दयँदे
तुचो पिला के खेलाते रएँदे
सुत लमाउन दे बाई
मके ताग लमाउन दे”
बाई सुनुन जाय बाबा
सरसर सुतो लमाय ||0144||


क्षेत्र : बस्तर (छत्तीसगढ़)
भाषा : हल्बी
गीत-प्रकार : लोक गीत
गीत-वर्ग : आनुष्ठानिक गीत, जगार गीत, धनकुल गीत, (ब) तिजा जगार
गीत-प्रकृति : कथात्मक, लोक महाकाव्य
गीतकार : पारम्परिक
गायन : पाट गुरुमाय सुकदई और चेली गुरुमाय सोमारी (सरगीपाल पारा, कोंडागाँव, बस्तर)
ध्वन्यांकन : 1996
ध्वन्यांकन एवं संग्रह : हरिहर वैष्णव

 

यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं

जगार सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …

6 टिप्पणियां (+add yours?)

  1. cgsongs
    अगस्त 31, 2011 @ 05:26:12

    जगार से सम्बंधित जानकारी और गीत छत्तीसगढ़ी गीत संगी को उपलब्ध कराने के लिए श्री हरिहर वैष्णव जी को बहुत बहुत धन्यवाद, आभार

    प्रतिक्रिया

  2. राहुल सिंह
    अगस्त 31, 2011 @ 06:17:22

    वैष्‍णव जी के माध्‍यम से जगार उपलब्‍ध करा रहे हैं, इसे यहां देखना अच्‍छा लग रहा है.

    प्रतिक्रिया

  3. Harihar Vaishnav
    अगस्त 31, 2011 @ 09:49:59

    Aap sabhii sudhijanon kaa aabhaar.

    प्रतिक्रिया

  4. Raja jaiswal
    सितम्बर 01, 2011 @ 13:08:40

    Bahut accha jai johar

    प्रतिक्रिया

  5. डॉ. धर्मेन्द्र परिहार
    सितम्बर 02, 2011 @ 23:42:55

    अति सुन्दर संगीत ……. मन नई मानत हे एक बार सुने के बाद बार- बार सुने के मन होथे… फिर छत्तीसगढ़ी गीत भी कबहू सुनातव त बने लागतीस… अब्बढ़ दिन होगे न?

    प्रतिक्रिया

  6. Chhaliya Ram Sahani 'ANGRA'
    दिसम्बर 15, 2014 @ 14:27:36

    jagar bastar ke vasi man la jagayeke bahut achha madhyam he. bali jagar ,aathe jagar ,tija jagar au laxmi jagar . jagran se man atma pavitra hothe.Harihar vaishnav ji la yekar bar bahu bahut dhanyavad.

    प्रतिक्रिया

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