छत्तीसगढ़ी खेल गीत … Chhattisgarhi Khel Geet (1)

Railgadi

रेलगाड़ी छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी छुक छुक
रेलगाड़ी छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी छुक छुक
रेलगाड़ी छुकछुक छुकछुक रेलगाड़ी छुक छुक
अतका अतका पानी गोल गोल रानी
अतका अतका पानी गोल गोल रानी

अकड़ बकड़ बम्बे हो अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ मिला के धागा चोरी करके भागा
सौ मिला के धागा चोरी करके भागा
अतका अतका पानी गोल गोल रानी
अतका अतका पानी गोल गोल रानी

अटकन बटकन दही चटाका
लऊहा लाटा बन में कांटा
चल चल बेटी गँगा जाबो
गँगा ले गोदावरी
पाका पाका बेल खाबो
बेल के डारा टूट गे
भरे कटोरा फुट गे
बेल के डारा टूट गे भरे कटोरा फुट गे } ( अटकन-बटकन खेल के गीत )
अतका अतका पानी गोल गोल रानी
अतका अतका पानी गोल गोल रानी

गोबर दे बछरू गोबर दे
चारों घुट ला लीपन दे
चारो देरानी ला बइठन दे
अपन खाते गुदा गुदा
मोला देथे बीजा
ऐ बीजा ला काय करबो
रई जहूं तीजा
तीजा के बिहान दिन सरी सरी लुगरा
हेर दे भउजी कपाट के खीला
काँव काँव करे मंजुर के पीला
एक गोड़ में लाल भाजी एक मा कपूर
कतेक ला मानव मैं देवर ससुर } ( फुगड़ी खेल के गीत )
अतका अतका पानी गोल गोल रानी
अतका अतका पानी गोल गोल रानी

हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की
अतका अतका पानी गोल गोल रानी
अतका अतका पानी गोल गोल रानी

पौरी अतका पानी गोल गोल रानी
माड़ी अतका पानी गोल गोल रानी
कनिहा अतका पानी गोल गोल रानी
छाती अतका पानी गोल गोल रानी
मुड़ी अतका पानी गोल गोल रानी
एती ले जाहूं तारा लगाहूँ
ओती ले जाहूं तारा लगाहूँ
पकड़ो पकड़ो पकड़ो पकड़ो पकड़ो } ( गोल गोल रानी खेल के गीत )


गायन शैली : ?
गीतकार : ?
रचना के वर्ष : ?
संगीतकार : ?
गायिका : पूरवी चंद्राकर अउ साथी
एल्बम : ?
संस्‍था/लोककला मंच : ?

यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं

गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …

18 टिप्पणियां (+add yours?)

  1. cgsongs
    अक्टूबर 02, 2010 @ 05:52:51

    Information from Google’s cache of http://cgculture.in/English/Chhattisgarh_at_a_Glance/Chhattisgarh_ke_khel/Giton_se_sambandhit.htm. It is a snapshot of the page as it appeared on 25 Aug 2010 16:08:32 GMT.

    cgculture.in से साभार

     

    अटकन-मटकन

    अटकन-मटकन गीतिक लोक खेल का नामकरण गीत के मुखड़ा से हुआ है । इसमें खेल का अस्तित्व सूक्ष्म व गीत प्रधान है किन्तु दोनों को पृथक-पृथक नहीं किया जा सकता । लोक खेलों में अटकन-मटकन वह खेल है जिसमें बच्चे व बुजुर्ग एक साथ सम्मिलित होकर मनोरंजन करते हैं । जब छोटा बच्चा रो रहा हो या किसी कारण से परेशान कर रहा हो तो बुजुर्ग द्वारा उसे भुलावा में डालने हेतु यह खेल प्रारंभ कर दिया जाता है । सामग्री के नाम से इसमें कुछ भी नहीं होता न ही मैदान स्वरुप रेखाएं होती है । यह स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने वाला सामूहिक लोक खेल है ।
    छत्तीसगढ़ी लोक खेलों में फुगड़ी गीत के समान इसका भी स्थान है । गीत दार्निक है । काया खण्डी है । गीत –

    अटकन मटकन, दही चटाकन
    लउआ लाटा, बन के कांटा
    चिहुरी चिहुरी पानी गिरे, सावन म करेला फूले,
    चल चल बिटिया गंगा जाबो,
    गंगा ले गोदावरी, आठ नांगा पागा,
    कोलिहान सिंग राजा ।
    पाका पाका बेल खावो
    बेल के डार टूटगे, भरे कटोरा फूटगे

    उक्त खेल गीत में मनुष्य की मृत्यु से अंतिम संस्कार तक का भाव मिलता है । प्रारंभ उस क्षण से होता है जब मानव मरना स्थिति में है । जब पंचामृत पिलाया जाता है । समाप्त किसी के शासन सम्हालने से होता है । इस तरह की गीत लोक खेलों की परंपरा को श्रेष्ठ बना देते हैं । जब खेल प्रारंभ होता है तब सम्मिलित सदस्य अपने अपने हाथ को सामने लाकर जमीन पर पट रख देते हैं । जो खेल का संचालन करता है वह भी अपने एक हाथ की हथेली को पट रखता है फिर दूसरे हाथ की एक उंगली को सभी के पट हाथ के ऊपर क्रमवार रखता जाता है जैसे गिनती कर रहा हो और पूर्व में दिये अटकन मटकन गीत को गाता है ।

    गीत का अंत जिसके हाथ में होता है अर्थात जिसके हाथ में राजा शब्द आता है वह पुक जाता है । उसे पलटकर चित रखा जाता है । ठीक आगे वाला हाथ से फिर गीत शुरु किया जाता है । इसी तरह गीत को बार-बार गाया जाता है । पट हथेली को चित किया जाता है । जिसका चित हथेली पुकता है वो उस हाथ को चूम कर अपने पीछे ले जाता है । एक एक कर सभी का हाथ पुक जाता है । अब सभी सदस्य अपने अपने हाथ को सामने लाकर फिर उसी तरह जमीन पर रखते हैं । इस बार हथेली के बीच का हिस्सा ऊपर उठा रहता है मात्र ऊंगलियों के नख को जमीन पर रखा जाता है ।

    जिस सदस्य ने अटकन मटकन का गीत गाया था वही कोई भी एक हथेली से पूछता है – काकर घोड़ ।
    जिसकी हथेली है वह बताता है – राजा का
    पुनः प्रश्न – काबर लानेस ।
    उत्तर देता है – पानी पियाय बर
    अंतिम प्रश्न – का पानी ।
    उत्तर – लाल पानी
    प्रश्नकर्ता उस उभरी हुई हथेली को दबा कर कहता है – बइठ रे घोड़ा

    उक्त खिलाड़ी का उभरी हुई हथेली बराबर स्थिति में हो जाती है । इसी तरह सभी की हथेली को बैठा देता है । अब उक्त हथेलियों को उठाने का क्रम आता है ।
    हथेली को धीरे से चिमटकर पूछता है – चिमटूल ते छोडूल ।
    हथेली वाला यदि चिमटूल कहता है तो उस हथेली को चिमटता है ।
    पुनः पुछता है – चांटा के चांटी ।
    यदि चांटा कहता है तो उसके हथेली को जोर से चिमटा जाता है और चांटी कहा तो हौले से ।
    फिर उस हथेली को उठाकर चित्त स्थिति में अपने दूसरे हाथ की हथेली को चित करके उस के ऊपर रख देता है । सभी हथेली को पूर्व की तरह सवाल-जवाब करके अपनी चित हथेली में रखने के लिए उठाया जाता है और क्रमवार रखा जाता है ।

    जो खेल का संचालन कर रहा है उसके एक हाथ के चित हथेली के उपर अन्य सभी के एक एक हथेली चित स्थिति में रख दिया जाता है । संचालक खेल को आगे बढ़ाता है, अपनी दूसरे हाथ की हथेली व कोहनी को बारी बारी से अपने चित हथेली में क्रमवार रखे हथेली के ऊपर रखता है और बोलता है — अताल के रोटी, पताल के दार, एकर लंगड़ी, धर बुचिकान

    कान शब्द के उच्चारण के साथ ही ऊपर वाला हाथ को हटा दिया जाता है और वह खिलाड़ी उस हाथ से पास वाले के कान को पकड़ लेता है । शेष हाथ के लिए फिर से अताल के रोटी… का गीत गाया जाता है । इसी तरह एक-एक करके सभी हाथ को उठा लिया जाता है । एक दूसरे के कान को पकड़ लेते है ।

    फिर सामूहिक रुप से बोलते हैं — केऊ मेंऊ, केंऊ मेंऊ, मेंकरा के जाला, भूरर
    भूरर शब्द के साथ एक दूसरे के कान को छोड़ते हैं और खेल समाप्त हो जाता है । घर के अंदर खेला जाने वाला यह गीत प्रधान लोक खेल आज भी जीवंत है ।

     

    फुगड़ी

    फुगड़ी छत्तीसगढ़ के ग्राम्य जीवन में प्रचलित व्यक्तिगत अर्थात एकल लोक खेल है । इसमें किसी तरह की सामग्री नहीं होती है और न ही लंबा चौड़ा मैदान । फुगड़ी का खेल घर के अंदर आंगन या बरामदा में खेला जाता है । ग्रामीण खेलों की विशाल संस्कृति में फुगड़ी मात्र खेल न होकर नारी उत्पीड़न का दर्शन भी है । नारी खेल श्रृंखला में यह शीर्षस्थ पर है । उक्त खेल को नाबालिक लडकियां ही खेलती है । विवाहित व युवा के लिए समाज में मान्यता नहीं है । मर्यादा एवं सामाजिक बंधन में जकड़ा हुआ नारी समाज जब स्वतंत्रता की चाह करता है तो उक्त खेल की परिकल्पना हो जाती है । यह गीतिक लोक खेल है और इसमें जो गीत है वह मात्र नारी पीड़ा का दर्शन कराती है । प्रत्येक बंधन को तोड़कर मायके की तरह समय व्यतीत करने का भाव प्रदर्शित करता है । नाबालिक बच्चों की तरह विवाहिता फुगड़ी खेलने लगती है ।
    गीत-
    गोबर दे बछरु गोबर दे
    चारों खूंट ल लीपन दे
    चारो देरानी ल बइठन दे
    अपन खाये गूदा-गूदा
    हमला देथे बीजा ।
    ये बीजा ल का करबो
    रहि जबो तीजा ।।
    तीजा के बिहान दिन, घरी घरी लुगरा ।
    चींव चींव करे मंजूर के पिला ।
    हेर दे भउजी कपाट के खिला ।।
    एक गोड़ म लाल भाजी
    एक गोड़ म कपूर ।
    कतेक ल मानंव मंय
    देवर ससूर ।।
    फुगड़ी रे फूं-फूं
    फुगड़ी रे फूं-फूं

    गोबर दे बछरु गोबर दे, फुगड़ी का लोकप्रिय गीत है । इसके अलावा और भी गीत प्रचलन में मिलते हैं । जैसे –
    ममा घर गेंव, या महल बनायेंव
    (पांच पइसा पाय हन, महल बनाय हन)
    ये महल का के । भईंसा ओइलाय के
    ये भईंसा का के । गोबर हगवाय के
    ये गोबर का के । अंगना लिपाय के
    ये अंगना का के । भउजी ह आय के
    ये भउजी का के । लईका होवाय के
    ये लइका का के । डंडा गिल्ली धराय के
    ये गिल्ली का के । पईसा जिताय के
    ये पईसा का के । पान लेवाय के
    ये पान का के । मुंहू रचाय के
    ये मुहू का के । दुनिया देखाय के
    एक गोड़ म लाल भाजी
    एक गोड़ म कपूर
    कतेक ल मानव मंय देवर ससूर
    फूगड़ी रे फूं…
    आले-आले डलिया
    पाके गोंदलिया
    राजा घर के पुतरी
    खेलन दे फुगड़ी
    फुगड़ी रे फूं फूं…
    भड़वा काड़ी के पटा बनाले
    सिकुन काड़ी के गुजरी
    आबे रे पंचालीन टुरी
    संगे खेलबोन फूगड़ी

    नियम व शर्तेः-
    फुगड़ी खेलने के लिए बालिकाएं पंजे के बल बैठ जाती हैं । जिस स्थान पर बैठे हैं उस स्थान को लीपने जैसा अभिनय करते हुए गीत गातीं है (गीत उपर दिये हैं)। गीत समाप्त होता है । प्रतिभागी फुगड़ी प्रारंभ कर देता है । फुगड़ी खेलते समय दोनो हाथ पृथ्वी से उपर रहते हैं । फुगड़ी खेलने की प्रक्रिया इस तरह से होता है पहले दाहिने पैर को आगे तथा बांये पैर को पीछे सरकाते हैं फिर दाहिने पैर को पीछे करने के साथ ही बाएं पैर को आगे सरकाते हैं । ऐसे ही बार बार किया जाता है । दांया पैर आगे होता है तब बांया हाथ तथा बांया पैर आगे सरकता है तब दांया हाथ आगे की ओर आ जाता है और पीछे सरकने के साथ पीछे हो जाता है । उक्त समय ऐसा अनुभव होता है मानो प्रतिभागी दौड़ रहा हो । पैर व हाथ को एक निश्चत स्थान पर आगे पीछे करने की प्रक्रिया है जो बिना रुके लगातार देर तक चलती रहती है । जो सब से अधिक समय तक फुगड़ी खेल सके वही श्रेष्ठ कहलाता है । फुगड़ी खेल लेने के बाद जो लड़की सबसे पहले हार जाती है उसे जीतने वाली चिढ़ाते हुए कहती है ।
    हार गे डउकी हार गे, लीम तरी पसर गे
    लीम मोर भईया
    तंय ह भउजईया

     

    गोल गोल रानी

    गीतिक लोक खेलों की श्रृंखला में गोल-गोल रानी सामूहिक खेल है जिसमें किसी भी किस्म की सामग्री का प्रयोग नहीं होता । उक्त खेल को गीत के बोल से ही जाना जाता है । इस खेल के लिए खुले मैदान की आवश्यकता नहीं पड़ती । घर का आंगन या गली गुड़ी इस खेल के लिए उत्तम स्थान होता है । इस खेल में आठ से बारह वर्ष तक के लड़के व लड़कियां सम्मिलित होते हैं । वैसे तो यह खेल छोटी से छोटी जगह पर हो जाता है । किंतु छू लेने की प्रक्रिया जब आती है तब खेल के लिए सीमा क्षेत्र बढ़ जाता है । इस खेल में कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि छू जाने के भय से खिलाड़ी, गांव के विभिन्न गली में भागते हैं । यह खेल अधिक खिलाड़ियों में सरल व रोचक बन जाता है । कम से कम पांच व अधिकाधिक दस खिलाड़ियों के समूह सर्वोत्तम होता है । खिलाड़ियों में स्फूर्ति, चतुराई व सावधानी इस खेल के लिए अनिवार्य होता है । गोल-गोल रानी खेल की संरचना इस तरह हुई है कि गीत और खेल के अस्तित्व को पृथक करना अंसंभव है खेल ही गीत है गीत ही खेल है । उक्त तथ्य को यह खेल सार्थक करता है । उक्त खेल को प्रत्येक मौसम में खेलते हुए बच्चे मिल जाते हैं ।

    नियम व शर्तेः-
    प्रतिभागी पहले फत्ता करते हैं । कोई भी एक खिलाड़ी सफल होता है । वही पहले दाम लेता है । वह एक स्थान पर खड़ा हो जाता है । शेष खिलाड़ी उसे घेर कर खड़े हो जाते हैं । सभी एक दूसरे का हाथ पकड़ कर एक गोला का आकार देते हैं । वहां से दाम लेने वाला खिलाड़ी बाहर नहीं निकल सकता है ।

    दाम लेने वाला पहले बोलता है — इत्ता इत्ता पानी
    गोला बनाये खिलाड़ी घूमते हुए बोलते हैं — गोल-गोल रानी
    दाम लेने वाला अपनी एड़ी के उपर भाग को पकड़ कर बोलता है — गुठुवा गुठवा पानी
    शेष खिलाड़ी घूमते हुए — गोल-गोल रानी़
    दाम लेने वाला अपनी माड़ी (घुटना) को पकड़ कर बोलता है — माडी अतका पानी
    शेष खिलाड़ी घूमते हुए — गोल-गोल रानी
    दाम लेने वाला कमर को पकड़कर — कनिहा अतका पानी
    शेष खिलाड़ी घूमते हुए — गोल-गोल रानी
    दाम लेने वाला छाती पर हाथ रखकर — छाती अतका पानी
    शेष खिलाड़ी घूमते हुए — गोल-गोल रानी
    दाम लेने वाला अपना गला पकड़कर — टोंटा अतका पानी
    शेष खिलाड़ी घूमते हुए — गोल-गोल रानी

    उक्त गीत के भावों से स्पष्ट होता है कि शेष खिलाड़ी बाढ़ का प्रदर्शन कर रहे हैं । दाम लेने वाला खिलाड़ी उस बाढ़ में फंस गया है । पहले पानी नहीं के तुल्य थी फिर पांव डूब गया । पानी का स्तर बढ़ता गया । घुटना डूबा, कमर, छाती फिर गला तक पानी पहुंच गया है । गला तक का इशारा करने के बाद वह डूब जाने के भय से निकलना चाहता है और दो खिलाड़ियों के जुड़े हुए हाथ को इशारा कर बोलता है इधर से जाउंगा, सभी खिलाड़ी गोल घूमना बंद कर देते हैं ।
    सिर्फ उत्तर देते हैं — ताला लगा है ।
    फिर किसी जु़ड़े हुए हाथ के तरफ इधर से जाउंगा,
    शेष खिलाड़ी — पानी भरा है ।
    फिर किसी जुड़े हुए हाथ के तरफ इधर से जाउंगा,
    शेष खिलाड़ी — बाहरी लगाउंगा ।
    इसी तरह बार-बार वाक्यों का उच्चारण करते जाते हैं । दाम लेने वाला खिलाड़ी चकमा देते हुए किसी एक तरफ से हाथ को छूड़ा कर भाग जाता है। शेष खिलाड़ी तुरंत ही छूने के लिए दौड़ते हैं । जैसे ही भाग रहे खिलाड़ी को शेष खिलाड़ी में से कोई भी छू लेता है तो खेल पूर्ण हो जाता है । पूर्वास्थान पर आते हैं । अब जो छुवा था वही खिलाड़ी दाम लेता है शेष खिलाड़ी गोला बनाकर खड़े हो जाते हैं । पूर्व के जैसे ही खेल प्रारंभ कर दिया जाता है । इस तरह यह खेल चलता रहता है ।

    प्रतिक्रिया

  2. Khilesh
    मार्च 14, 2011 @ 13:11:38

    Apka bahut bahut dhanyavad.
    apne bahut badhiya prayas kiya hai.
    Hame Chhattisgarh ke khelon ki jankari di, mai chahta hun ki anya khelon ki jankari dete to aur achchha hota.

    प्रतिक्रिया

  3. kanha sharma pacheda
    मई 05, 2011 @ 22:07:48

    chattishgarh ki sanskritee ki anupam chata bikharne ke liye and khelo ki jankari ke liye thanks.samjh me nahi aata kis tarah aapka sukriya ada kare. many many thanks.

    प्रतिक्रिया

  4. bhanu
    जनवरी 20, 2012 @ 17:11:08

    aishne chhattisgarh ke mahak la failawat rahaw…. sangi

    प्रतिक्रिया

  5. falesh thakur gohinabahara
    अप्रैल 21, 2012 @ 14:40:04

    abbad maja aais jab human ha e gana la sunen atik achha jaankari humla au kono jagah le nai milis …..dhanywad.

    प्रतिक्रिया

  6. कल्याणसिँह पटेल
    दिसम्बर 01, 2012 @ 23:47:25

    सुघ्घर गीत लईका मन बर । मेह शहीद स्कूल शहीद नगर बिरगाँव रायपुर छ ग मेँ पढ़ाथँव ये गीत मोला अब्बड़ सुघ्घर लागिस बहुत बधाई।

    प्रतिक्रिया

  7. Jagmohan Sahu
    मार्च 19, 2013 @ 23:09:09

    Abbad sughghar lagis. Apla bahut Bahut Dhanyavad. Aap ke paryas ke karan mola aaj apn Project banaye bar khel Geet milis he. Apke Mehnat la Naman he.
    Jai Hohar! Jai 36garh! Jai 36garhi..

    प्रतिक्रिया

  8. rinku sahu
    मार्च 22, 2013 @ 13:38:24

    Aaap ke ye geet la sun ke bachpana ke yaad aage au aap la rinku ke johar

    प्रतिक्रिया

  9. Yeegal Kishor Sahu Sambalpur
    मई 24, 2013 @ 16:32:15

    mujhe aaj bachpan ki baat yad aa gaya jab hame hamari medanm sikhati thi

    प्रतिक्रिया

  10. Sunil Sahu
    अक्टूबर 02, 2013 @ 22:08:26

    ye geet h haman la apan laikapan k au wo samay k sangwari man k yaad dilate. ab ye geet la meha apan student man la karahu. bahut bahut dhanywaad GEET SANGE sangwari ho.

    प्रतिक्रिया

  11. hariram
    मार्च 12, 2014 @ 23:51:34

    mujhe utna achha nhi lga jitna mai soch rha tha,Qki isme k khel geet adhure likhe huye h,bahut sare or khel git h,jise nhi jora gya h..use v jorne ki kosis kijiye.ok

    प्रतिक्रिया

  12. MANOJ KURRE
    जुलाई 26, 2014 @ 08:25:25

    bahut achcha lagthe jab ae gana man la sunthan ta………..

    प्रतिक्रिया

  13. प्रीतम देवाँगन
    अप्रैल 26, 2016 @ 01:34:29

    बड़ सुघ्घर लगिस अउ आप मन ले अनुरोध हावय अइसने प्रकाशित करते रहव। आप मन के बहुत बहुत धन्यावाद छत्तीसगढ़ी संस्क्रिती ल सइत के रखे बर।

    प्रतिक्रिया

  14. SANUK LAL YADAV
    अक्टूबर 29, 2016 @ 22:17:35

    बहुत सुंदर बाल गीत सुनकर मन गदगद हो गया।

    प्रतिक्रिया

  15. bhanu pratap sahu
    नवम्बर 16, 2016 @ 11:52:11

    bahut bahut dhanyavad.
    apne bahut badhiya prayas kiya hai.
    Hame Chhattisgarhi ke git ke jankari isi prakar ,dete rahana

    प्रतिक्रिया

  16. योगेश्वर
    अप्रैल 21, 2017 @ 07:15:26

    क्या यह व्यख्या सही है
    ?

    1- ( अटकन )
    अर्थ-
    जीर्ण शरीर हुआ जीव जब भोजन उचित रूप से निगल तक नहीँ पाता अटकने लगता है–

    2- ( बटकन )
    अर्थ-
    मृत्युकाल निकट आते ही जब पुतलियाँ उलटने लगती हैं-

    3- ( दही चटाकन )
    अर्थ –
    उसके बाद जब जीव जाने के लिए आतुर काल में होता है तो लोग कहते हैँ गंगाजल पिलाओ

    4- ( लउहा लाटा बन के काटा )
    अर्थ-
    जब जीव मर गया तब श्मशान भूमि ले जाकर लकड़ियों से जलाना अर्थात जल्दी जल्दी लकड़ी लाकर जलाया जाना

    6- ( तुहुर-तुहुर पानी गिरय )
    अर्थ-
    जल रही चिता के पास खड़े हर जीव की आँखों में आंसू होते हैं

    7- ( सावन में करेला फुटय )
    अर्थ-
    अश्रुपूरित होकर कपाल क्रिया कर मस्तक को फोड़ना |

    8- ( चल चल बेटा गंगा जाबो )
    अर्थ-
    अस्थि संचय पश्चात उसे विसर्जन हेतु गंगा ले जाना ।

    9- ( गंगा ले गोदावरी जाबो )
    अर्थ-
    अस्थि विसर्जित कर घर लौटना ।

    10- ( पाका-पाका बेल खाबो )
    अर्थ-
    घर में पक्वान्न (तेरहवीं अथवा दस गात्र में) खाना और खिलाना |

    11- ( बेल के डारा टुटगे )
    अर्थ-
    सब खा-पीकर अपने-अपने घर चले गए |

    12- ( भरे कटोरा फुटगे )
    अर्थ-
    उस जीव का इस संसार से नाता छूट गया ।

    13- ( टुरी-टुरा जुझगे )
    अर्थ-
    दशकर्म के बाद सब कुछ भुलकर सब कोई अपने-अपने काम धंधा में लग गये |

    यह प्रतीकात्मक बाल गीत इतना बड़ा सन्देश देता रहा और अर्थ समझने में इतने वर्ष लग गए।

    प्रतिक्रिया

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