आज लाए है आपके लिए ‘घर द्वार’ फिल्म का चौथा गीत…
छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना के दस वर्ष पूरे होने के अवसर पर दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘घर द्वार’ के निर्माता ‘स्व.विजय कुमार पाण्डेय’ के सुपुत्र और ‘घर द्वार कला संघ’ के निर्देशक श्री जयप्रकाश पाण्डेय से हमें आप तक पहुँचाने के लिए ‘घर द्वार’ फिल्म के गानों का MP3 ऑडियो फाइल और फोटोग्राफ प्राप्त हुआ है।
पता : विजयबाड़ा, भनपुरी, रायपुर (छ.ग.), जे.के.फिल्मस्, रायपुर
मोबाइल : 9826108303, 9300008303
फिल्म के कुछ दुर्लभ तस्वीरें…
पेश है आज का गीत …
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो~~~
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो~~~
चन्दा के डोली मा तोला संग लेगिहव
बादर के सुग्घर चुनरिया मा रानी
बादर के सुग्घर चुनरिया मा रानी
आज अध-रतिहा हो~~~
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो~~~
चन्दा के डोली मा बड़ ड~र लागे बड़ निक लागे
तोर गलबहियां में बड़ निक लागे
तोर गलबहियां में आज अध-रतिहा हो~~~
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो~~~
बन नहीं रहिबो ते गाँव नहीं रहिबो
बन नहीं रहिबो ते गाँव नहीं रहिबो
रहिबो मया के नगरीया मा रानी
रहिबो मया के नगरीया मा राजा
आज अध-रतिहा हो~~~
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो~~~
आज अध-रतिहा हो~~~
आज अध-रतिहा हो~~~
गायन शैली : ?
गीतकार : हरि ठाकुर
रचना के वर्ष : 1965-68
संगीतकार : जमाल सेन
गायन : सुमन कल्याणपुर, मोहम्मद रफी
निर्माता : विजय कुमार पाण्डेय
फिल्म : घर द्वार
फिल्म रिलीज : 1971
संस्था : जे.के.फिल्मस्, रायपुर
‘घर द्वार’ फिल्म के अन्य गीत
सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे … Sun Sun Mor Maya Pira Ke Sangwari Re
गोंदा फुलगे मोरे राजा … Gonda Phoolege More Raja
झन मारो गुलेल … Jhan Maro Gulel
जउन भुईयाँ खेले … Jaun Bhuiayan Khele
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
धरतीपुत्र – हरि ठाकुर
छत्तीसगढ़ राज्य दस वर्ष पूर्व बना मगर छत्तीसगढ़ी फिल्मों का सफर चार दशक पूर्व प्रारंभ हो गया था। साहित्य एवं संस्कृति के पुरोधा लगातार सैकड़ों वर्षों से छत्तीसगढ़ राज्य बनाये बैठे थे। संभवत: इसीलिए छत्तीसगढ़ इस तरह शांतिपूर्ण ढंग से अस्तित्व में आ सका। एक लंबी रचनात्मक प्रक्रिया से गुजर कर बना है हमारा छत्तीसगढ़। इसके निर्माण में भुला दिए जा रहे महान धरतीपुत्रों का योगदान है। इनमें मनु नायक निर्मित पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘कहि देबे संदेश’ के कवि डॉ.हनुमंत नायडू ‘राजदीप’ और दूसरी छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘घर द्वार’ के गीतकार हरि ठाकुर ऐसे साधक हैं जिन्हें राज्य बनने के बाद यथोचित महत्व नहीं मिला।
हरि ठाकुर का जन्मः 16 अगस्त 1927, में रायपुर में हुआ। स्वाधीनता संग्रामी ठाकुर प्यारेलाल सिंह के पुत्र होने के नाते हरि ठाकुर की परवरिश राजनीतिक संस्कार में हुई थी। छात्रावास में वे छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे। उन्होंने बी.ए., एल.एल.बी. तक शिक्षा प्राप्त की तथा वकालत को अपना व्यवसाय बनाया। आजादी की लडाई के महत्वपूर्ण सिपाही स्व.श्री हरि ठाकुर हिन्दी के वरिष्ठतम गीतकारों में एक सम्मानित नाम हैं। हरि ठाकुर सच्चे मायनों में छत्तीसगढ़ के जन-जन के मन में बसने वाले कवियों में अपनी पृथक पहचान के साथ उभरते हैं। वे हिन्दी एवं छत्तीसगढ़ी, दोनों भाषाओं में लिखते थे। उन्होंने कविता, जीवनी, शोध निबंध, गीत तथा इतिहास विषयक लगभग दो दर्जन से अधिक कृतियों के माध्यम से छत्तीसगढ़ राज्य की गरिमा को जगाया है। छत्तीसगढ के महत्वपूर्ण इतिहासविद, स्वतंत्रतासंग्राम सेनानी के रूप में जाने जाने वाले हरि ठाकुर की छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण में महती भूमिका रही है। जिनका सम्मान वस्तुतः छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संघर्ष का सम्मान है। वे 1942 के आंदोलन से लेकर 1955 के गोवा मुक्ति स्वतंत्रता संग्राम तक सक्रिय रहे। भूदान आंदोलन में भागीदारी की, 1954 में नागपुर भूदान की पत्रिका साम्ययोग का संपादन किया और 1960 में छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की। 1965-66 में वे संज्ञा मासिक पत्रिका के संपादक बने और 1967-68 में साप्ताहिक राष्ट्रबंधु के । वे छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण संयोजन समिति के संयोजक भी रहे। 1995 में उन्होंने सृजन सम्मान संस्था की स्थापना, गठन की और 2001 तक इसके अध्यक्ष रहे। उनका निधन 3 दिसम्बर, 2001 में नई दिल्ली में हुआ।
कृतियाँ –
हिंदी कविता संग्रह:
01. नये स्वर
02. लोहे का नगर
03. अंधेरे के खिलाफ
04. मुक्ति गीत
05. पौरूषः नये संदर्भ
06. नये विश्वास के बादल
07. हँसी एक नाव सी (गीत संकलन)
छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह:
01. छत्तीसगढ़ी गीत अउ कविता
02. जय छत्तीसगढ़
03. सुरता के चंदन
04. धान के कटोरा
05. बानी हे अनमोल
06. गीतों के शिलालेख
07. शहीद वीर नारायण सिंह
इतिहास, शोध, जीवनी:
01. त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारे लाल सिंह
02. छत्तीसगढ़ के रत्न
03. उत्तर कोसल बनाम दक्षिण कोसल
05. छत्तीसगढ़ के इतिहास पुरूष
06. छत्तीसगढ़ गाथा
07. जल, जंगल और ज़मीन के संघर्ष की शुरूआत
08. छत्तीसगढ़ राज्य का प्रांरभिक इतिहास
09. कोसल की भाषा कोसली
10. छत्तीसगढ़ का सांस्कृतिक विकास
सम्मान :
छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य सम्मेलन, श्री चक्रधर कला केंद्र रायगढ़
महात्मा गाँधी जन्म शताब्दी समारोह, मध्यप्रदेश
रामचंद्र देशमुख सम्मान, भिलाई
महंत नरेंद्रदास स्मृति सम्मान, भोपाल
छत्तीसगढ़ी साहित्य सम्मेलन द्वारा नागरिक अभिनंदन, रायपुर
महाकोशल अलंकरण आदि सैकड़ो सम्मान एवं पुरस्कार
अनेक विश्वविद्यालयों एवं स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रमों में रचनाओं का समादरण।
स्व.हरि ठाकुर जी ऐसे महान पिता के यशस्वी पुत्र थे जिन्होंने यथा पिता तथा पुत्र की उक्ति को ही अपने जीवन में चरितार्थ किया। उनके पिता स्व.ठाकुर प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ की नि:स्वार्थ सेवा की थी और अपना सर्वस्व छत्तीसगढ़ महतारी के चरणों में समर्पित कर दिया था। इसीलिए यहां की जनता ने उन्हें श्रद्धापूर्वक त्यागमूर्ति कहा। ऐसा उदाहरण बिरला ही मिलेगा जब एक स्थापित नेता का योग्यपुत्र राजनीति से ही सन्यास ले ले। राजनीतिक जीवन की चकाचौंध हरि ठाकुर को तनिक भी आकर्षित नहीं कर सकी। हरि ठाकुर जी अपने पिता से विरासत में मिले राजनीतिक परिवेश को ही त्याग कर साहित्य के क्षेत्र में पदार्पण किया और साहित्य क्षितिज पर जाज्वल्यमान नक्षत्र की भांति प्रकाशित हुए। हरि ठाकुर जी छत्तीसगढ़ के अग्रणी साहित्यकार थे। वे बड़े अख्खड़ स्वभाव के थे। न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर यही भाव उनके व्यक्तित्व में झलकता था। छत्तीसगढ़ के प्रति समर्पण एवं साहित्य का गहरा ज्ञान उन पर राजनीति से भारी पड़ गया, फलत: अपने पिता से प्राप्त राजनीतिक विरासत को तिलांजली देते हुए साहित्य साधना में लीन हो गए।
हरि ठाकुर जी लंबे समय से पृथक राज्य की महत्ता अपनी लेखनी के माध्यम से प्रतिपादित कर रहे थे क्योंकि वे सच्चे अर्थों में डॉ.खूबचंद बघेल की परंपरा के ही विचारक थे। डॉ.साहब के पृथक राज्य के स्वप्न को मूर्तरुप देने हेतु वे तन मन धन न्यौछावर कर रहे थे। डॉ.खूबचंद बघेल के निधन से उन्हें गहरा धक्का लगा था। उन्होंने ‘छत्तीसगढ़ के महान सपूत डॉ.खूबचंद बघेल’ शीर्षक लेख में उनके निधन को अपूर्णनीय क्षति निरुपित करते हुए लिखा कि उनके निधन से छत्तीसगढ़ ने अनुभव किया कि उसका आधार स्तंभ ही ढह गया। छत्तीसगढ़ ने उस दिन अपना सर्वाधिक लोकप्रिय नेता खो दिया। डॉ.साहब छत्तीसगढ़ की माटी के सर्वाधिक मोहक सुगंध थे। वह सुगंध छत्तीसगढ़ की माटी में समा गयी। बीमार छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक कुशल डॉक्टर छत्तीसगढ़ को ही बीमार छोड़कर चला गया। छत्तीसगढ़ का अगाघ प्रेम भी उसे नहीं रोक पाया। छत्तीसगढ़ के आकाश में एक अजीब सा सन्नाटा छा गया। निर्मल प्रकाश का वह पुंज बुझ गया, जागरण की वह व्याकुल वाणी मौन हो गयी। डॉ.साहब के निधन के पश्चात पृथक राज्य हेतु समय समय पर भी छिटपुट आंदोलन होते रहे, उन सब में मनसा वाचा अपनी भागीदारी देकर हरि ठाकुर जी हमेशा सक्रिय रहे तथा अपनी लेखनी से आवाज बुलंद करते रहे। जब चंदूलाल चंद्राकर के नेतृत्व में पृथक राज्य आंदोलन छिड़ा तो उन्हें मानो डॉ.खूबचंद बघेल जैसा सच्च कर्णधार मिल गया। वे बड़ी आस्था के साथ सर्वदलीय मंच से जुड़ गए। वैसे तो छत्तीसगढ़ आंदोलन से अनेक लोग जुड़े किंतु निश्छल भाव से जुड़ना सर्वथा भिन्न बात है। हरि ठाकुर जी छत्तीसगढ़ आंदोलन के नाम पर दुकानदारी चलाने वालों को कभी भी पसंद नहीं किया। वे सही मायने में छत्तीसगढ़ राज्य के हिमायती नेताओं को शीघ्र पहचान जाते थे। अपनी कसौटी पर खरे उतरने पर ही उन्होंने चंदूलाल चंद्राकर का साथ दिया था।
लंबे समय से छत्तीसगढ़ में अन्य प्रांतों के लोग आते रहे हैं तथा यहां व्यापार व्यवसाय के क्षेत्र में कम समय में ही धन्ना सेठ बन गये हैं। यहां के मूल निवासी आज भी लगभग विपन्नता में पड़े हुए हैं। इसीलिए पृथक राज्य के हिमायती नेताओं ने छत्तीसगढ़ को बाहरी लोगों के चारागाह होने जैसी बात भी जोरशोर से उछालकर इस शोषण के विरुद्ध आवाज उठाई थी। स्व.हरि ठाकुर जी ने डॉ.खूबचंद बघेल के संबंध में लिखा है कि छत्तीसगढ़ मातृसंघ के माध्यम से डॉ.साहब ने शासकीय तथा गैरशासकीय उद्योगों एवं संस्थानों की नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दिलाने के लिए कई आंदोलन छेड़े। शोषण और दमन के विरोध में उनका स्वर प्रखर से प्रखरतम होता गया। संभवत: डॉ.साहब से ही प्रभावित होकर हरि ठाकुर जी ने यह लिखा होगा –
लोटा लेके आने वाला, इहां टिकाइन बंगला
जांगर टोर कमाने वाला, हे कंगला के कंगला
बाहर से लोग यहां आकर विधायक मंत्री बनकर राजनीतिक प्रभुत्व भी कायम करते रहे हैं, ऐसे अनेक उदाहरण गिनाये जा सकते हैं। किन्तु छत्तीसगढ़ के लोग बाहर जाकर विधायक मंत्री बने हों, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है। छत्तीसगढ़ से लोग बाहर जाते तो है पर कमा खाकर वापस आ जाते हैं, वे कोई संग्रह नहीं कर पाते। संग्रही प्रवृत्ति का छत्तीसगढ़ियों में नितांत अभाव है। यहां परंपरागत संस्कार ही कुछ ऐसी है कि आज दिन भर के खाने की व्यवस्था हो जाने पर ही कल की चिंता नहीं करते। घर गृहस्थी संभालने के मामले में यहां की महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर परिश्रम करती हैं वरन कुछेक परिवारों में घर गृहस्थी के मुखिया के रुप में कार्य करती देखी जा सकती है। यहां कुछ लोग जो डॉक्टर, वकील बन गये हैं अथवा भिलाई इस्पात संयंत्र जैसे संस्थानों में या शासकीय नौकरियों में लग गए हैं इन्हें छोड़कर शेष लोग विपन्नता की स्थिति में पड़े हुए हैं फिर भी संतोषी सदा सुखी की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। पहले कभी संपन्नता के प्रतीक माने जाने वाले दाऊ लोगों की स्थिति भी आज बड़ी दयनीय हो चली है। व्यापार में यदि रुचि भी हो तो इसके तौर तरीकों का ज्ञान नहीं होना सबसे बड़ी बाधा है। झूठ बेइमानी से धन अर्जित करने की बात मूल छत्तीसगढ़ियां कभी सोच नहीं सकते। गांवों में छोटे छोटे दुकान चला रहे हैं वे किसानों से अधिक खुशहाल हैं। छोटे मोटे धंधा करने वाले छत्तीसगढ़ी लोग बाहरी लोगों की तुलना में सक्षम हैं ऐसा नहीं मान सकते। बाहरी लोगों का यहां आने का उद्देश्य मात्र पैसा कमाना है। छत्तीसगढ़ी लोग केवल भरण पोषण के लिए बाहर जाते हैं। यहां के लोग रोजी मजदूरी नहीं मिलने पर व्याकुल होकर भागते हैं। बाहरी लोग धनार्जन के उद्देश्य से यहां आते हैं। अकाल की स्थिति में शासन द्वारा राहत कार्य चलाये जाते हैं लेकिन उसमें सीमित लोगों को ही काम मिल पाता है। अत: भुखमरी से पीड़ित अतिरिक्त लोग पेट की आग बुझाने पलायन कर जाते हैं तथा समय पर खेती किसानी संभालने वापस भी आ जाते हैं। यहां के शांतिप्रिय भोले भाले लोग देश के किसी भी कोने में स्थायी रुप से बस नहीं पाते। किंतु बाहर से लोग यहां व्यापार व्यवसाय के लिए आते हैं तथा इसे अपने मूल प्रांत की अपेक्षा शांतिप्रिय व सुरक्षित पाकर स्थायी रुप से बस जाते हैं। छत्तीसगढ़ का शांतिपूर्ण माहौल उन्हें भा जाता है। पैसा कमा लेने के बाद उन्हें अपना देश जाना असुरक्षित सा लगता है। यहां के भोले भाले छत्तीसगढ़ियों के बीच वे निश्चिंत भाव से सुरक्षित हो जाते हैं। अन्य प्रांतों के लोग देश के किसी भी कोने में जहां रोजगार व्यापार व्यवसाय का अच्छा अवसर है वहां जाने के लिए तैयार रहते हैं वे मजबूरी में पलायन नहीं करते। छत्तीसगढ़ के लोगों में ऐसा न कोई हुनर है न बल है न देश छोड़कर परदेश भागने की मानसिकता है। स्व.हरि ठाकुर को ही ले लीजिये। वे प्रकाशन द्वारा जीविका चला रहे थे, बिजिनेस नहीं कर रहे थे अत: उनकी आर्थिक स्थिति ज्यों की त्यों बनी रही। उनके पिता ठाकुर प्यारेलाल त्यागमूर्ति कहलाए। वास्तव में प्रत्येक छत्तीसगढ़ियां त्याग के बल पर जीता है। छल प्रपंच के लिए उसके हृदय में कोई स्थान नहीं होता।
छत्तीसगढ़ के मूल निवासी आज भी लगभग विपन्नता में पड़े हुए हैं। इसी व्यथा को कविताओं में लगातार विस्तार देने वाले हरि ठाकुर ने घर द्वार में ‘गोंदा फुलगे मोर राजा’, ‘सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे’ तथा ‘आज अधरतिया मोर फुलवारी म’ जैसे गीतों का सृजन कर उन लोगों को चकित कर दिया जो उन्हें श्रृंगार गीत रचने में माहिर मानने को तैयार नहीं थे। वैचारिक आलेखों के लिए वंदित एवं अपने चर्चित कई शोध ग्रंथो के लिए सम्मान प्राप्त हरि ठाकुर ने खुले मन से फिल्म माध्यम को स्वीकार किया। मर्यादा में रहकर संकेतों के माध्यम से श्रृंगार गीतों को रचने का कीर्तिमान हरि ठाकुर ने बनाया।
(प्रस्तुत आलेख में डॉ.परदेशी राम वर्मा, विकिपीडिया, रामप्यारा पारकर और दाऊ स्व.वासुदेव चंद्राकर के शब्दों को पिरोया गया है, स्व.हरि ठाकुर की तस्वीर प्राप्त हुई श्री आशुतोष मिश्रा से, आप सबका आभार… धन्यवाद)
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …
राहुल कुमार सिंह
नवम्बर 25, 2010 @ 05:50:04
गीत तो बढि़या है ही, जानकारी भी बहुत जोरदार हे. फिल्म संग 1965-70 का बर लिखे हे. रिलीज के सन देना ठीक रतिस. गीत के संग म अइ तरह से छोटे ही संबंधित जानकारी आत जाही, त ए ब्लॉग हर गंभीर संदर्भ कोश बन जाही.
cgsongs
नवम्बर 25, 2010 @ 10:54:52
श्री जयप्रकाश पाण्डेय से प्राप्त फिल्म के फोटोग्राफ में 1965-1970 लिखा हुआ हैं, जो फिल्म के निर्माण संकल्प से लेकर उसके पूर्ण होने तक के समय को दर्शाता हैं। फिल्म 1971 में रिलीज हुई थी।
जागेंद्र कुमार साहू
अगस्त 23, 2020 @ 11:28:44
बहुत ही सुंदर कलेक्शन
KRISHNA KUMAR PATEL
नवम्बर 25, 2010 @ 20:44:53
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा… छत्तीसगढ़ी फिल्म घर द्वार के गाना ला सुन के बहुत अच्छा लगीस आप मन से निवेदन हे कि एकर video देखे के मन लागत हे
धन्यवाद
VINOD PACHEDA MAHASAMUND
नवम्बर 27, 2010 @ 14:59:05
“आज अधिरतिया मोर फुल बगिया मेँ” सुनकर अत्यंत खुशी हुई । मैने सोँचा भी न था कि रफी जी के आवाज मेँ मुझे छत्तीसगढ़ी गाने सुनने को मिलेगा । बहुत बहुत धन्यवाद ।
Nilesh
नवम्बर 30, 2010 @ 19:47:18
dharti ke angana ma chaindaini gonda phool ge (khuman sao ji)
arun kumar nigam
दिसम्बर 03, 2010 @ 00:37:17
छत्तीसगढ़ के सुमधुर गीतों का संकलन सराहनीय है.नई पीढ़ी में बहुत कम युवा ही शायद जानते होंगे कि सन ६० के दशक में “कहि देबे सन्देश” और “घर-द्वार” में मो.रफ़ी,सुमन कल्यानपुर और मन्ना डे जैसे महान गायकों ने छत्तीसगढ़ी में गीत गाये हैं.सन ६० के दशक के फ़िल्मी गीतों कि तरह ही इन फिल्मों के गीत भी सदा अमर रहेंगे.छत्तीसगढ़ी गीतों में हीरों कि कमी नहीं है.ये बात और है कि आज बाजार काँच के चमकदार टुकड़ों से पटा पड़ा है ,किन्तु हीरा तो आखिर हीरा है.पारखी लोग देख कर ही अंतर जान जाते हैं.नकली फूलों से बैठक -कक्ष को सजाया जा सकता है.मंदिर में तो असली फूल ही काम आते हैं. छत्तीसगढ़ी गीतों का यह मंदिर सदैव सुवासित रहे.मेरी शुभ-कामनाएं…..
ishwar khandeliya
दिसम्बर 03, 2010 @ 19:44:32
लरिकाई के दिन मा सुने गीत फेर सुनेबर मिलगे बड़ बढ़िया लागिस ए गीत मन के मिठास के त कुछु कहिन इच नई ए संकलन करे बर झौआ भर आभार
rohit parganiha
दिसम्बर 12, 2010 @ 19:55:20
Jen geet la khojat khojat kai sal gujar ge ola Jakir Bhai ha pura ithaas sahit prastut kar dis okar pachhu Jakir Bhai ke mehanat au lagan ha fariya ke dikhat he. Aikar bar Jakir Bhai la bahut bahut danyawad au abhaar.Hamar chhattisgarh ke gauravshali sanskritik itihas la samne laye bar aisane prayas ke jaroorat he, au tabhe aaj ke Khota sikka man bahir hohi.
prem
दिसम्बर 14, 2010 @ 17:29:25
हरि ठाकुर के सुग्घर गीत अउ अमर गायक मुहम्मद रफी के संग सुमन कल्याणपुर के गुरतुर गायकी हर घर-द्वार के गीत बन के हमर छत्तीसगढ़ी मा चार चाँद लगा दे हवे। अइसन चाँद के जौन कभू नहीं बुड़ही, अउ न बुढ़ाही। ये मन ला संजो के रखे बर आप मन ला धन्यवाद। ये बात याद रखे के हे के छत्तीसगढ़ी भाषा अऊ संसकिरीति हर अइसनेच परयास ले फलही अउ फूलही। खाली हल्ला मचा के राजनीति करवैया मन के हुल्लड़ ले कुछू नइ बनही।
DEV BAGBAHARA
दिसम्बर 15, 2010 @ 12:51:08
मैने घरद्वार के सभी गाने सुने । बहुत अच्छा लगा । साथ ही प्रख्यात कवि श्री हरी ठाकुर के बारे मेँ जानकारी ज्ञानवर्धक लगा । गीत और जानकारी दोनो
के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
स्वराज्य करुण
दिसम्बर 18, 2010 @ 15:33:13
सुंदर सार्थक प्रस्तुतिकरण . आभार .
lokesh
मार्च 15, 2011 @ 18:55:21
adbad badia hai ji .
Rajesh Kumar Soni
मार्च 23, 2011 @ 17:13:00
Very good collection of chhattisgarh geet, keep it up. Sun sun mor maya pira ke sangwari re song is in clear voice. if possible please provide it
Dr Uday Pacheda
अप्रैल 13, 2011 @ 17:54:18
maine apne dosto ko bataya ki Md RFI sahab ki aawaj me cg song hai. meri hansi udane lga par jab maine mobile k jariye un logo ko sunaya to wo khush ho gaye mujhe sorry kha. mai apne mitra, manoj, radhe, bharat, pulesh, vinusahu ko bhi thanks deta hun. and gana k liye puri team ko thanks.
Dr Uday Pacheda
अप्रैल 13, 2011 @ 17:57:33
maine apne dosto ko bataya ki Md RFI sahab ki aawaj me
cg song hai. meri hansi udane lga par jab maine mobile k jariye un logo ko sunaya to wo khush ho gaye mujhe sorry kha. mai apne mitra, manoj, radhe, bharat, pulesh, vinusahu ko bhi thanks deta. and gana k liye puri team ko thanks.
someshdhar sharma pacheda
अप्रैल 16, 2011 @ 17:25:45
very good collection of cg song. i am very glad to hering it. i cant belive it. very very thanks.
Mithalesh Verma
मई 24, 2011 @ 22:21:14
I am very impress to this site because i always think that how can we save our cultural and our folk song. so very thanks specially chandrakar ji that you bring this work to our front and our society.
DEEPESH AWASTHI
जून 03, 2011 @ 00:06:08
MAHU LA AAP MAN KE YE SANKALAN BAHUT SUGHGHAR LAGIS APSE LE ANURODH HAWAY YE GHAR DWAR MOVIE LA KAHA LE DOWNLOAD Kiye JA SAKTHE ..
shaluntala
जून 03, 2011 @ 10:41:45
adbhut hai aapke sanyojan. bahut din bad junna geet man la ek sang ma suneke mauka lagat he. dhanywad
praveen kumar sahu
जून 05, 2011 @ 19:18:25
ye gana har mola bahut achcha lagis. aisne gana ha man la gadgad kar de the. thank you
Kaleshwar_Chauhan.
नवम्बर 30, 2011 @ 08:18:23
Ye chhattisgarhi jo Rafi k awaz ke he. bahut he achchha he.. Md Rafi k awaz bhi bahut sugghar mitha hawe.. ye geet la main akser suntech raithow..
more sabhi chhattisgarhiya sangwari mann la more taraf se Jai Johaar..
………Jai Chhattisgarh……….
Janardan Prajapati
मार्च 21, 2012 @ 23:45:46
Ye gana geet la main akser suntch raithaw…
ricky
जून 10, 2012 @ 18:31:40
mast lagis a gana la fir se rilise karav
Sanjay Puri Goswami Raipura Raipur
अक्टूबर 20, 2012 @ 13:37:43
Raipur Changora Bhanta ke Higher Secondery School ka nam kararan Mananiya Brijmohan Agrawal ji Schooli shiksha Mantri C G govt ne karane ki Ghoshana kar di hai .Changora ki Parshad Smt Choubey aur Chhagan choubey ke perposal se ye sambhav hua hai .Isake liye C G sahitya samiti ke adhyaksha Sushil yadu bahut dino se prayas kar rahe the .Aap sabhi ko badhai .
Sanjay Puri Goswami Raipura Raipur
अक्टूबर 20, 2012 @ 14:02:46
Ukat School ka nam Shri Hari Thakur ke nam par kiya jaraha hai.
Hari Thakur Higher Secondery School
Changorabhanta Raipur
Chhattisgarhi sahitya premiyon ko Badhai.
Iran Deshmukh
फरवरी 12, 2013 @ 18:20:29
C.g. Ke Mati la mahkaay KE Achha prayas hi.
Bhawani shanker mahobia
जुलाई 31, 2014 @ 23:16:15
Jai chhattishgarh.matri bhumi Vandna”. Aap Thagaye sukh upje.”manne wale hm c.g.walo Ko Jamane Ke sath jagrook hona chahiye.c.g. Ke Asmita shejne walo Ke is prayas Ke liye bdhaie.
Chhaliya Ram Sahani 'ANGRA'
दिसम्बर 06, 2014 @ 15:00:05
Rachnakar Hari thakur la shrdha suman arpan he.
anilkothari
जून 13, 2015 @ 13:59:10
Ye ek achchha websites hai jisme hamare chhatishgarh ki anmol lame chhipi hui hai
घनश्याम कुमार देवांगन, भिलाई
अक्टूबर 07, 2015 @ 15:36:24
बहुत सुंदर एवं सराहनीय प्रयास है, छत्तीसगढ़ी गीतों को सहेजने का। हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
नवनीत चन्द्रवंशी
फरवरी 14, 2016 @ 13:28:10
बहुत अच्छा लगिस की हमर जो पुराना छत्तीसगढी गीत हे ओह हमन ला फेर सुने बर मिलत हे ये बहुत अच्छा बात हे आप मन के बहुत बहुत धन्यवाद!!
घनश्याम कुमार देवांगन, भिलाई
मार्च 18, 2016 @ 16:44:12
आज घलो जुन्ना छत्तीसगढ़ी गाना मन ल सुन के मन ह झूम उठथे। जऊन ढंग ले छत्तीसगढ़ी के सबो जुन्ना गाना मन ल संजो को रखे के जतन करे गे हे, वो सब ह संहराय के बात आय। सबो झन मन ल गाड़ा गाड़ा बधाई।
जऊन ढंग ले पहिली चंदैनी गोंदा, सोनहा बिहान, कारी सहीं छत्तीसगढ़ी के बड़े बड़े कार्यक्रम होवय, वइसने बर मन तरसत रहिथे।
अभी घलो कतकोन झन मन बने काम करत हवंय, फेर अऊ बड़का काम करे के जरूरत हावयं।
चलो, जुर मिल के जतन करत रहिबो।
Devendra Ramchand Chitriv
नवम्बर 19, 2016 @ 11:20:47
Superb