बिहा गीत
बस्तर में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं। इनमें गोंड (मुरिया, माड़िया, अबुझमाड़िया, दण्डामी माड़िया), दोरला, भतरा, हल्बा, धुरवा और परजा प्रमुख हैं। सभी जनजातियों की संस्कृति में अन्तर के बावजूद कहीं न कहीं एक-दूसरे की संस्कृति से आदान-प्रदान की छाप स्पष्ट दिखलायी पड़ती है। विवाह की कई रस्में समानता लिये होती हैं तो कई रस्मों में अन्तर भी झलकता है। ‘महुड़ बाँदनी’ रस्म की ही बात लें। यह रस्म प्रायः सभी जनजातियों और इसके साथ ही अन्य गैर जनजातीय समुदायों में भी प्रचलित है किन्तु रिवायतों में कहीं न कहीं थोड़ा-बहुत फर्क दिखलायी पड़ता है। उदाहरण के तौर पर विवाह के समय वर और वधू को ‘महुड़ (मुकुट)’ बाँधने की रस्म को लें। प्रायः वर अथवा वधू को वर अथवा वधू के पितृ-पक्ष के लोगों द्वारा जिनमें पिता, ताऊ और काका तथा बड़ा भाई और गाँव का पुजारी अथवा गाँयता मिल कर महुड़ (मुकुट) बाँधते हैं। वधू को महुड़ पहनाने के समय गाये जाने वाले गीत में करुणा होती है। पिता के द्वारा महुड़ पहनाने का अर्थ है उसके घर से बेटी की विदाई। यही भाव होता है इस गीत में।
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आलेख, संकलन : श्री हरिहर वैष्णव
सम्पर्क : सरगीपाल पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़।
दूरभाष : 07786-242693
मोबाईल : 76971-74308
ईमेल : hariharvaishnav@gmail.com
प्रस्तुत “महुड़ बाँदनी गीत” भतरा जनजाति के विवाह में गाया जाता है। इस गीत को गाया है भतरा जनजाति की श्रीमती दसमी बाई ने :
ना काँद रे डाउल-बुटा पुजारी मकुट बाँदे
ना काँद रे डाउल-बुटा पुजारी मकुट बाँदे
बाँदे तो बाँदे लाड़े-लाड़े बाँदे
बाँदे तो बाँदे लाड़े-लाड़े बाँदे
बाँदे तो बाँदे सोगे-सोगे बाँदे
बाँदे तो बाँदे हो सोगे-सोगे बाँदे
ना काँद रे डाउल-बुटा नाना मकुट बाँदे
ना काँद रे डाउल-बुटा नाना मकुट बाँदे
बाँदे तो बाँदे हो सोगे-सोगे बाँदे
बाँदे तो बाँदे हो लाड़े-लाड़े बाँदे
ना काँद रे डाउल-बुटा पुजारी मकुट बाँदे
ना काँद रे डाउल-बुटा पुजारी मकुट बाँदे
बाँदे तो बाँदे हो सोगे-सोगे बाँदे
बाँदे तो बाँदे हो लाड़े-लाड़े बाँदे
बाटो रो सिंद-बुटा रोदो-रोदो काँदे
बाटो रो सिंद-बुटा रोदो-रोदो काँदे
ना काँद रे सिंदी-बुटा पुजारी मउड़ बाँदे
ना काँद रे सिंदी-बुटा पुजारी मउड़ बाँदे
बाँदे तो बाँदे लाड़े-लाड़े बाँदे
बाँदे तो बाँदे सोगे-सोगे बाँदे
ना काँद रे सिंदी-बुटा पुजारी मउड़ बाँदे
ना काँद रे सिंदी-बुटा पुजारी मउड़ बाँदे
बाँदे तो बाँदे लाड़े-लाड़े बाँदे
बाँदे तो बाँदे सोगे-सोगे बाँदे
ना काँद रे सिंदी-बुटा पुजारी मउड़ बाँदे
ना काँद रे सिंदी-बुटा पुजारी मउड़ बाँदे
क्षेत्र : बस्तर (छत्तीसगढ़)
भाषा : भतरी
गीत-प्रकार : लोक गीत
गीत-वर्ग : 02-सांस्कारिक गीत, विवाह गीत (द), 22-महुड़ बाँदनी गीत
गीत-प्रकृति : अकथात्मक
गीतकार : पारम्परिक
गायन : दसमी बाई, (ग्राम : खोरखोसा, तहसील : जगदलपुर, बस्तर-छ.ग.)
ध्वन्यांकन : 1997
ध्वन्यांकन एवं संग्रह : हरिहर वैष्णव
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
बिहा गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …
Harihar Vaishnav
फरवरी 25, 2012 @ 10:32:53
Dhanywaad bhaii Rajesh ji.
vitendra
फरवरी 27, 2012 @ 14:19:56
bahut sundar harihar bhaiya aap ne bahoot hi payara parmparik geet samhal ke rakha hai aap badhai ke para hain. aaj kal shadi vyah me bhoot se geet gayab ho chuke hain .
Harihar Vaishnav
मार्च 02, 2012 @ 04:27:02
Hausalaa afjaaii ke liye dhanywaad bhaaii Vitrndra jii.
Harihar Vaishnav
मार्च 02, 2012 @ 04:30:50
Bhaaii Rajesh jii, aaj koii bhii geet nahin baj rahaa hai. Maine Jas Geet aadi sunne ke kai pryaas kiye kintu saphlataa nahin milii.
Devpatel
अप्रैल 21, 2012 @ 15:47:40
This song are rises cg manner and culture.so veri Quet song.