वर्षा ऋतु आरम्भ होते ही मन-मयूर नाच उठता है। सावन-भादों मानो अमृत बरसाते हैं। वर्षा का आगमन किसान के लिये किसी वरदान से कम नहीं होता। कारण, जल ही तो जीवन है, न! जल नहीं तो कुछ भी नहीं। और फिर अकूत वन एवं खनिज सम्पदा के स्वामी आदिवासी बहुल बस्तर अंचल के लिये तो वर्षा के जल का इसीलिये भी अत्यधिक महत्त्व है क्योंकि यहाँ सिंचाई की मानवीकृत सुविधाएँ जो उपलब्ध नहीं हैं। और यदि हैं भी तो एक-दो ही जिनका कोई अर्थ ही नहीं।
बस्तर अंचल में प्रमुखतः धान की खेती की जाती है। गौण अन्न के रूप में मँडिया, कोदो आदि तथा सरसों, डेंगी तिल (राई), तिल, उड़िद (उड़द), लाहेड़ (अरहर), चना, बटरा (मटर) आदि तिलहनी-दलहनी फसलें भी उगायी जाती हैं।
वर्षा न हो अथवा उसके आगमन में विलम्ब हो तो प्रकृति-पूजक बस्तर अंचल में लोक विश्वास के अनुसार ‘मेंडका बिहाव (मेंढक का विवाह)’ और ‘भिमा जतरा’ के आयोजन की परम्परा रही है। ‘भिमा’ को वर्षा का देवता माना गया है। यही कारण है कि ‘बाली जगार’ नामक लोक महापर्व का आयोजन 93 दिनों के लिये किया जाता है। यह वर्षा की अभ्यर्थना का लोक महापर्व है। इस महापर्व में ‘बाली जगार’ लोक महाकाव्य का गायन गुरुमायें करती हैं।
बहरहाल, बस्तर की लोक-भाषा हल्बी में प्रस्तुत इस गीत में वर्षा के आगमन के साथ ही अन्तस्तल में उठ रहे विभिन्न मनोभावों को प्रकट किया गया है। पानी ‘झिमिर-झिमिर (हौले-हौले किन्तु लगातार)’ बरस रहा है। ऐसे में युवतियाँ साथ-साथ गाने और नाचने के लिये एक-दूसरे का आह्वान कर रही हैं। वे एक-दूसरे से कह रही हैं कि वर्षा के आगमन के साथ ही जेठ की विकट गरमी से जलती देह को सुकून मिला है। इतना ही नहीं अपितु वर्षा होने के साथ ही मानव-देह के साथ-साथ धरती रानी को भी ठण्डक का अहसास हुआ है और सभी ‘बाबू-नोनी’ भी प्रसन्न हो गये हैं। वे धान की निंदाई करने के लिये जाने की बात भी कह रही हैं और ‘अमुस तिहार’ (छत्तीसगढ़ी परिवेश में ‘हरेली’) मनाने की बात भी कर रही हैं। उन्हें विश्वास है कि वर्षा के आगमन के साथ ही उनके सारे दुःख-कष्ट दूर हो गये हैं। इसीलिये तो वे अब ‘रेला’ (लोक गीत) गाने की भी बातें कर रही हैं।
इस गीत के गीतकार श्री खीरेन्द्र यादव (जन्म : 8 मई 1972, कोंडागाँव, बस्तर-छ.ग.) बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे हल्बी के उभरते हुए गीतकार, गायक और रंगकर्मी हैं। पिछले लगभग 20 वर्षों से वे बस्तर के लोक संगीत और रंगकर्म से जुड़े हुए हैं। ‘जगार सांस्कृतिक समिति’ एवं अन्य लोक कला संस्थाओं के माध्यम से उन्होंने अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। इस बीच ‘सुकसी पुड़गा’ नामक आडियो कैसेट और ‘चापड़ा चटनी’ नामक विडियो एलबम भी प्रकाश में आ चुका है। इन दिनों वे काष्ठ शिल्प से भी जुड़ गये हैं और विभिन्न नगरों/महानगरों में उनके शिल्प प्रदर्शित होने लगे हैं।
तरुण पाणिग्राही (जन्म : 4 दिसम्बर 1972, कोंडागाँव, बस्तर-छ.ग.) बस्तर के उदीयमान लोक संगीतकार हैं। उनका परिवार बस्तर के लोक संगीत में रचा-बसा है। काका टंकेश्वर पाणिग्राही अपने समय के ख्यात गायक रहे हैं और अनुज भूपेश पाणिग्राही उनके समकालीन लोक संगीतकार हैं। ‘सुकसी पुड़गा’ एवं ‘मोचो मया’ तथा कई आडियो कैसेट और विडियो अलबम में तरुण ने बस्तर के मधुर लोक संगीत का जादू बिखेरा है।
नन्दा शील (जन्म : 13 जून 1976, कोंडागाँव, बस्तर-छ.ग.) बस्तर की प्रमुख लोक गायिकाओं में स्थान रखती हैं। ‘जगार सांस्कृतिक समिति’ एवं अन्य लोक कला संस्थाओं के अलावा आकाशवाणी के माध्यम से भी उन्होंने बस्तर के लोक संगीत को प्रस्तुत किया है। नन्दा के गाये गीत ‘सुकसी पुड़गा’ एवं अन्य कई आडियो कैसेट और विडियो अलबम में सुने जा सकते हैं।
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आलेख व संकलन : श्री हरिहर वैष्णव
जन्म : 19 जनवरी 1955, दन्तेवाड़ा (बस्तर-छत्तीसगढ़)।
पिता : श्यामदास वैष्णव
माता : जयमणि वैष्णव
शिक्षा : हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर
भाषाएँ : हिन्दी, हल्बी, भतरी, छत्तीसगढ़ी, अँग्रेजी
मूलत: कथाकार एवं कवि। साहित्य की अन्य विधाओं में भी समान लेखन-प्रकाशन। सम्पूर्ण लेखन-कर्म बस्तर पर केन्द्रित। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानी-कविता के साथ-साथ महत्वपूर्ण शोधपरक रचनाएँ प्रकाशित। लेखन के साथ-साथ बस्तर के लोक संगीत तथा रंगकर्म में भी दखल
प्रकाशित कृतियाँ : मोहभंग (कहानी-संग्रह), लछमी जगार (बस्तर का लोक महाकाव्य), बस्तर का लोक साहित्य (लोक साहित्य), चलो, चलें बस्तर (बाल साहित्य), बस्तर के तीज-त्यौहार (बाल साहित्य), राजा और बेल कन्या (लोक साहित्य), बस्तर की गीति कथाएँ (लोक साहित्य), धनकुल (बस्तर का लोक महाकाव्य), बस्तर के धनकुल गीत (शोध विनिबन्ध)
सम्पादन : बस्तर की मौखिक कथाएँ (लोक साहित्य, लाला जगदलपुरी के साथ), घूमर (हल्बी साहित्य पत्रिका), प्रस्तुति, ककसाड़ (लघु पत्रिकाएँ)
प्रकाश्य कृतियाँ : बाली जगार, आठे जगार, तीजा जगार, बस्तर की लोक कथाएँ, बस्तर की आदिवासी एवं लोक कलाएँ (भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली से), सुमिन बाई बिसेन द्वारा प्रस्तुत छत्तीसगढ़ी लोक-गाथा धनकुल (छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी, रायपुर से)
अन्य : बस्तर के लोक साहित्य के संकलन में किशोरावस्था से ही संलग्न। सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के अन्तर्गत आस्ट्रेलियन नेशनल युनीवर्सिटी के आमन्त्रण पर 1991 में आस्ट्रेलिया, लेडिग-रोव्होल्ट फाऊन्डेशन के आमन्त्रण पर 2000 में स्विट्जरलैण्ड तथा दी रॉकेफेलर फाऊन्डेशन के आमन्त्रण पर 2002 में इटली प्रवास। स्कॉटलैंड की एनीमेशन संस्था ‘वेस्ट हाईलैंड एनीमेशन’ के साथ हल्बी के पहले एनीमेशन फिल्मों का निर्माण।
सम्मान : छत्तीसगढ़ हिन्दी साहित्य परिषद् से ‘स्व. कवि उमेश शर्मा सम्मान’ 2009 में। दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, भोपाल द्वारा वर्ष 2010 के लिये ‘आंचलिक साहित्यकार सम्मान’ घोषित।
सम्प्रति : बस्तर पर केन्द्रित पुस्तकों पर काम जारी।
सम्पर्क : सरगीपाल पारा, कोंडागाँव 494226, बस्तर-छत्तीसगढ़।
दूरभाष : 07786-242693
मोबाईल : 93004 29264, 76971 74308
ईमेल : lakhijag@sancharnet.in, hariharvaishnav@gmail.com
प्रस्तुत है आज का गीत…
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
झिमिर-झिमिर मारेसे पानी
झिमिर-झिमिर मारेसे पानी
सँगे गावाँ सँगे झेलवाँ आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी
झिमिर-झिमिर मारेसे पानी
सँगे गावाँ सँगे झेलवाँ आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी आमी-तुमी रानी
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
जेठ दिन चो डाहा गेली
देंहे मचो सीतर होली
जेठ दिन चो डाहा गेली
देंहे मचो सीतर होली
जेठ दिन चो डाहा गेली
देंहे मचो सीतर होली
सितरली रे धरती रानी
हरिक होला सबय बाबू-नोनी
हरिक होला सबय बाबू-नोनी
झिमिर-झिमिर
झिमिर-झिमिर मारेसे पानी
सँगे गावाँ सँगे झेलवाँ आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी आमी-तुमी रानी
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
आमी निंदा निंदुक जावाँ
अँदायँ आमी रेला गावाँ
आमी निंदा निंदुक जावाँ
अँदायँ आमी रेला गावाँ
आमी निंदा निंदुक जावाँ
अँदायँ आमी रेला गावाँ
अमुस तिहार आमचो इली
दुख-डँड चो दिन हमचो गेली
दुख-डँड चो दिन हमचो गेली
झिमिर-झिमिर
झिमिर-झिमिर मारेसे पानी
सँगे गावाँ सँगे झेलवाँ आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी आमी-तुमी रानी
आमी-तुमी रानी आमी-तुमी रानी
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
साय रेला रे रेला रे रे रैयो रे रेला
क्षेत्र : बस्तर (छत्तीसगढ़)
लोक भाषा : हल्बी
गीतकार : खीरेन्द्र यादव
रचना के वर्ष : 1995
संगीतकार : तरुण पाणिग्राही
गायन : नन्दा शील और साथी
एल्बम : ‘सुकसी पुड़गा’ आडियो कैसेट, 1996
यहाँ से आप MP3 डाउनलोड कर सकते हैं
गीत सुन के कईसे लागिस बताये बर झन भुलाहु संगी हो …
Harihar Vaishnav
जुलाई 31, 2011 @ 10:05:07
Bastar kii aawaaz ko sthaan dene aur use sudhi shrotaaon tak pahunchaane ke liye aapkaa kotishah aabhaar.
cgsongs
जुलाई 31, 2011 @ 11:12:11
इस मधुर रेला गीत को सब तक पहुँचाने हेतु मुझे भेजने के लिए मैं आपका आभारी हूं साथ ही आपके माध्यम से मैं खीरेन्द्र यादव, तरुण पाणिग्राही और नन्दा शील को भी धन्यवाद देता हूं…
rupendra verma
जुलाई 31, 2011 @ 14:28:55
fock aur classical ka adbhut sangam
RISHABH NATH YOGI
जुलाई 31, 2011 @ 17:24:13
BANE BANE MITAN
Nemchand
अगस्त 05, 2011 @ 15:41:42
Kali ke madai ma le dareau fundara
Gobinda satnami
अगस्त 05, 2011 @ 22:56:29
Gana sunke to bahut sughar lagis ka sur he man mohit hoge par thora v jodi bujhe pateu bahut acha lagtich
dulal kashriya
अगस्त 05, 2011 @ 23:38:06
गाना अच्छा है।
UTTAM JAIN
अक्टूबर 26, 2011 @ 22:56:10
AAJ BASTAR KI PEHCHAN OUT SIDE ME KEVAL NEXALITE PROBLEM SE HOTI HAI LEKIN YE GEET SUNA KAR IS PEHCHAN KO MITAYA JA SAKTA HAI , VERY VERY NICE
दुल्लु राम वर्मा
अप्रैल 21, 2012 @ 09:33:22
हमर छत्तीसगढ़ी लोक संगीत ल आपमन संजोए राखेव एकर बर मेहाँ आपमन ला बधाँई देवँत हव ।
जय जोहार
जय छत्तीसगढ़
Yashwant Baghel
मार्च 13, 2013 @ 16:14:29
Bastar ki boli ko jan-jan tak pahuchane ke achchha kosish
ravi kumar nirmalkar
नवम्बर 19, 2014 @ 22:06:34
Chhattisgarhi git sunaiya jammo mitan mitanin man la ravi nirmalkar k jay jojar
Subh rattri
DrRupendra Kavi
जून 15, 2015 @ 15:30:29
Sughhar geet..bane lagis..aapman ke abhar
KHILESHWARI SAHU
फरवरी 18, 2017 @ 12:17:25
Kya apke pass rela song ka shadi Wala geet bhi h kya. Agar h to plz share kare
domesh kumar shori
अप्रैल 15, 2017 @ 15:01:31
Bahut hi Sunder aur mantramugdh karne wala geet hai santh hi music bhi ….Behatreen 👌👌👌👌
विकास गोयल
जुलाई 03, 2017 @ 08:25:02
Harihar vesnav ji नमस्कार आपके ये वेबसाइट ओर गाने बूहुत सी जानकारी उपलध करते है इसके लिए धन्यवाद ओर आभार भी। में कई दिनों से हल्बी के कुछ प्रसिद्ध गीत खोज रहा हूँ पर भी तक मीले नही है, उम्मीद है आपके पास उलब्ध होंगे और आप उनके बारे में भी बताएंगे। ये जो गीत है वो मेघनाथ पटनायक जी ने गया है “आया मोचो दंतेसरी बुआ भैरम आयभाई दंडकार बईन इन्दाराबती सरन सरनतुमके सरन सरन आयमयं आयं बस्तर जिला चो आदिबासी पिलाबैलाडीला बैलाडीला” ये गाना आज तक ओरिजनल नही मिला और भी गाने है जैसे 1 – लेजा लेजा लेजा दादा लेजा केंवराघोटिया मंडई जायेंदे दादा पयसा देऊराकाय लेजा रे होय दादा पयसा देऊरा |2-सुका सिंयाडी भेलवां लसा डोबरी खाले चो आय।
उम्मीद है आप इन गानों के बारे में बताएंगे भी ओर शेयर भी करेंगे ताकि लोग बस्तर को तथा उसके इतिहास को जाने समझे
Harihar Vaishnav
जुलाई 04, 2017 @ 12:20:43
Main prayas karta huun.